इतिहास कैसे पढ़ें | इतिहास पढ़ना क्यों जरूरी है


इतिहास कैसे पढ़ें


नमस्कार दोस्तों आज हम बात करेंगे कि हमें इतिहास का अध्ययन कैसे और क्यों करना चाहिए? हमें अपने अतीत को क्यों जानना चाहिए? आज की दुनिया में अतीत की क्या प्रासंगिकता है?

चलिए शुरू करते हैं सबसे पहले यह जानते हैं कि इतिहास आखिर है क्या?

इतिहास एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा सदियों से होती आई है और आगे भी होती रहेगी। इतिहास ही वह माध्यम है जिसके जरिए हम अपने अतीत की घटनाओं को जान सकते हैं, हमारे पूर्वजों ने किन परिस्थितियों में किस प्रकार से अपना जीवन व्यतीत किया, किस प्रकार से अपनी आजीविका चलाई, उस समय पारिस्थितिक तंत्र कैसा था, प्रकृति कैसी थी, किन परिस्थितियों में उन्होंने इन जगहों को निवास के लिए चुना, कोई संस्कृति किस प्रकार से विकसित हुई, दो या दो से अधिक संस्कृतियों का मेल किस प्रकार से हुआ, कोई सभ्यता कितनी पुरानी है, समय के अनुसार विभिन्न सभ्यताओं में विभिन्न संस्कृतियों में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं, क्यों हुए इत्यादि चीजें जानने का स्रोत इतिहास ही है।


किसी व्यक्ति, वस्तु, सभ्यता या किसी राष्ट्र से संबंधित महत्वपूर्ण एवं विशेष घटनाओं, तथ्यों आदि का कालक्रमिक विवरण अर्थात समयबद्ध विवरण इतिहास कहलाता है। इतिहास किसी समाज विशेष या किसी सभ्यता की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति तथा समय के साथ-साथ विभिन्न परिस्थितियों में इनमें होने वाले परिवर्तनों को भी प्रस्तुत करता है। 


आइए जानते हैं इतिहास जानने के स्रोत क्या क्या हैं?

इतिहास जानने के लिए सबसे महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय स्रोत होते हैं पुरातात्विक स्रोत एवं साहित्यिक स्रोत। प्राचीन काल में जब कागजों का आविष्कार नहीं हुआ था उस समय की घटनाओं का आकलन पुरातात्विक स्रोतों जैसे ताम्रपत्रों, ताड़ पत्रों आदि में लिखे स्रोतों और खुदाई में प्राप्त प्राचीन बर्तनों, स्मारकों इत्यादि से किया जाता है।

ऊपर आपने पढ़ा कि इतिहास क्या होता है और उसे जानने के स्रोत क्या हैं 

अब जानते हैं इतिहास किस प्रकार से पढ़ा जाए?


हमें किसी राष्ट्र, सभ्यता व संस्कृति का इतिहास जानने के लिए प्राचीन साहित्यिक ग्रंथों एवं पुरातात्विक स्रोतों का सूक्ष्म विश्लेषण करना होता है। हमें उसकी गौरवगाथा नहीं करनी है बल्कि कोई घटना क्यों हुई, किन परिस्थितियों में हुई, किन कारणों से हुई, उसके क्या प्रभाव हुए, क्या परिणाम हुए इत्यादि चीजें पढ़ना होता है। उन घटनाओं का विश्लेषण करके अपने भविष्य का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। इसलिए अपने वर्तमान को अपने अतीत से जोड़ करके विश्लेषणात्मक अध्ययन के जरिए हम अपना भविष्य किस प्रकार का होगा, यह जान सकते हैं, उसे निर्मित कर सकते हैं एवं सुधार सकते हैं।

अब आपके मन में यह प्रश्न उठता होगा कि अतीत का वर्तमान से या भविष्य से क्या लेना देना है? तो चलिए यह भी जान लेते हैं कि आखिर अतीत का हमारे वर्तमान एवं हमारे भविष्य से क्या संबंध है?


विचार कीजिए आपने अपने पूर्वजों का इतिहास पढ़ा यह जाना कि उस समय उन्होंने अपना जीवन किस प्रकार से व्यतीत किया किन परिस्थितियों में उन्होंने अपनी संस्कृति को निर्मित किया, अपनी संस्कृति का पालन किया, किस प्रकार से किया और उनके द्वारा निर्मित इस संस्कृति के आधुनिक जीवन में क्या प्रभाव हैं, उन्होंने उस समय क्या गलतियां की जिसके आज गलत परिणाम हो रहे हैं या उन्होंने उस समय कोई कार्य किस दूरदर्शिता के साथ किया कि आज हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होता है। उनके द्वारा निर्मित इस संस्कृति से हम किस प्रकार अपना विकास कर रहे हैं लाभान्वित हो रहे हैं। वह कौन सी चीजें थी जिसमें वह हमसे ज्यादा प्रवीण थे, कुशल थे, योग्य थे और किन जगहों पर उनसे गलतियां हुई, इन सभी चीजों का सटीक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन करके हम उन्हें अपने वर्तमान से जोड़ सकते हैं और इसी आधार पर अपने वर्तमान को सुधार कर अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं अर्थात हम तुलनात्मक रूप से अध्ययन कर सकते हैं कि उन्होंने जो कार्य किया था उसके आज क्या परिणाम हुए हैं और हम जो कार्य आज कर रहे हैं भविष्य में उसके क्या परिणाम होंगे।
जवाहर लाल नेहरू

एक उदाहरण से समझते हैं 1958 में कश्मीर में छुट्टियां बिताने के दौरान जवाहर लाल नेहरू ने फैसला किया कि वह प्रधानमंत्री पद से सेवानिवृत्त हो जाएंगे, ताकि किसी युवा को मौका दिया जा सके। मगर जब वह दिल्ली लौटे तो उनके साथियों ने उन्हें अपने फैसले पर फिर से विचार करने को राजी कर लिया। अगर नेहरू अपने फैसले पर कायम रहते तो तो वह एक अत्यंत सफल राजनेता के तौर पर याद किए जाते, जिसने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में, बल्कि एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण में बेहद असरदार भूमिका निभाई। बहरहाल, नेहरू प्रधानमंत्री बने रहे, और मुंदड़ा मामला, केरल सरकार की बर्खास्तगी और चीन युद्ध के कलंक से खुद को बचा नहीं पाए। अगर 1958 में नेहरू ने किसी युवा के लिए जगह छोड़ी होती, तो इतिहास आज उन्हें किसी और तरह से याद रखता।


इस प्रकार से हम अपने इतिहास को वर्तमान से जोड़ करके अपने वर्तमान के जरिए सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। तो आज के इस आर्टिकल के जरिए आपने जाना की इतिहास हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है क्यों हमें अपने इतिहास को जानना चाहिए और उसे किस प्रकार अपने भविष्य से जोड़ना चाहिए, किस प्रकार अपने भविष्य का निर्माण करना चाहिए और इससे क्या सीखना चाहिए।

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