ये अंदेशा तो हमे पहले से था कि इन कट्टरपंथियों को अगर रोका नहीं गया तो यह इसी प्रकार की विभाजनकारी बात करेंगे। इस खालिस्तानी आतंकी पन्नू ने जिस प्रकार से देश को तोड़ने के लिए मुस्लिम समाज को भड़काने का प्रयास किया है, भारत सरकार को अब इस खालिस्तानी आतंकी को किसी भी हाल में अमेरिका से या कनाडा से जहां भी हो यह, इसे पकड़ कर भारत लाया जाना चाहिए। हमे अपने राष्ट्र की अखंडता को बनाए रखने के लिए इसकी संप्रुभता के विरुद्ध उठने वाली हर आवाज को, हर एक व्यक्ति को, हर एक देश को और हर एक संगठन को उसकी सीमा पार करने से रोकना होगा। उसे उसकी हैसियत और उसकी मर्यादा याद दिलानी होगी।
लगभग 100 वर्ष पूर्व जिस प्रकार से मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम हित के नाम पर अलग से आवाज उठाना शुरू किया था और धीरे-धीरे यह आवाज एक नए देश की मांग तक आ गई, उसी प्रकार से वर्तमान समय में भी वही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। भारत का एक मुस्लिम नेता ओवैसी लगातार हर मंच से मुस्लिमों को हिंदुओं से अलग साबित करने की कोशिश कर रहा है। उनके हित की बात उठाकर उनके मन में भारत के प्रति, हिंदुओं के प्रति, अन्य धर्मों के प्रति नफरत का बीज उत्पन्न कर रहा है। हमें यह समझ नहीं आता, क्या भारत में किसी मुस्लिम को किसी प्रकार का कष्ट है? क्या भारत की सरकार, भारत की जनता मुस्लिमों को अलग नजरिए से देखती है? उनके साथ भेदभाव करती है? और यदि नहीं करती है तो उनके लिए अलग से इस प्रकार की तुष्टिकरण करने वाली राजनीति क्यों हो रही है?
वास्तव में भारत में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक के नाम पर हिंदुओं से या अन्य लोगों से अधिक अधिकार प्राप्त हैं। सारी सुविधाएं उन्हें अधिक मिलती है। इसके बावजूद ओवैसी और अन्य नेता बार-बार समय-समय पर मुस्लिमों को भारत की मुख्य धारा से अलग खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। आखिर इस प्रकार की हरकतें कब तक बर्दाश्त की जाएंगी? हमें अपने इतिहास से सीखना चाहिए, ऐसा ना हो कि जिस प्रकार से मुस्लिम लीग की हरकतों पर ध्यान नहीं दिया गया और अंग्रेजों ने उन्हें भड़का भड़का कर भारत का विभाजन कर दिया, भारत की अस्मिता, भारत की अखंडता को छिन्न-भिन्न कर दिया, उसी प्रकार की घटना दोबारा घटित हो जाए। भारत के मुस्लिम समाज को खुद इस खालिस्तानी आतंकी के भड़काऊ बयान का विरोध करना चाहिए वरना आने वाले दिनों में फिर इस तरह की बयानबाजी करने वाले शत्रुओं की संख्या बढ़ेगी, ऐसी देश विरोधी ताकतें अधिक सक्रिय होंगी और साथ ही अन्य भारतीयों के मन में मुस्लिमों के प्रति बैर भाव उत्पन्न होगा।
हमें सावधान रहना है और सावधानीपूर्वक इन सभी देश विरोधी तत्वों की हरकतों पर नजर रखते हुए इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाई करनी होगी, क्योंकि यदि इन्हें नहीं रोका गया तो धीरे-धीरे ये हर चीज के लिए एक अलग मांग करने लगेंगे। जिस प्रकार से कर्नाटक में हिजाब के नाम पर बेमतलब का बवाल कर रहे हैं, उसी प्रकार से धीरे-धीरे फिर हर एक चीज के लिए धर्म की दुहाई देकर अलग व्यवस्था की मांग करेंगे। आज हिजाब की मांग कर रहे हैं, यदि इसे मान लिया गया तो कल यह कहेंगे कि हमारे मजहब में जुम्मा की नमाज को अनिवार्य किया गया है तो उसके लिए हमें हर शुक्रवार को छुट्टी देनी चाहिए, फिर इसके लिए आंदोलन चलाएंगे। फिर यह कहेंगे कि हमारे लिए काफिरों (गैर मुस्लिमों) से दोस्ती करने को मना किया गया है, उन्हें छूने से हम अपवित्र हो जाते हैं, नापाक हो जाते हैं, उसके लिए हमारे लिए अलग विद्यालय की व्यवस्था किया जाए, अलग अध्यापक रखे जाएं, अलग हॉस्टल की व्यवस्था की जाए, अलग अस्पताल बनाया जाए, अलग न्याय व्यवस्था बनाई जाए, हर चीज के लिए अलग व्यवस्था!, मतलब क्या है? ये सब क्या हो रहा है?
उन सभी व्यवस्थाओं के लिए पूरी दुनिया में 57 देश हैं, जिन्हें ऐसी व्यवस्था चाहिए, वे वहां जाकर रहें। भारत में ये सब संभव नहीं है। भारत में इन्हें जितनी स्वतंत्रता, जितनी आजादी, जितने अधिकार दिए गए हैं, उतने अधिकार तो इनके उन 57 देशों में भी नहीं मिले हैं, यहां इतने सुख पूर्वक, शांति पूर्वक रहने को अवसर मिला है, भारत जैसी पवित्र भूमि, देव भूमि पर रहने को इन्हें अवसर मिला है और उस पर भी बेमतलब का बवाल!
शायद इन लोगों ने अपने इतिहास से अपने अतीत से समझौता कर लिया है। शायद ये सब भूल चुके हैं कि किस प्रकार से यह जिस संस्कृति को, जिस मजहब को मान रहे हैं वह इनके पूर्वजों पर किस प्रकार से अत्याचार पूर्वक थोपी गई थी। हमारा एक प्रश्न है भारत में जितने भी मुसलमान रह रहे हैं,वह एक बार खुद सोचें कि क्या उनके पूर्वज मिडिल ईस्ट से आए थे? और यदि नहीं आए थे, तो वे भारत के लोगों से, हिंदुओं से भिन्न कैसे हुए? वास्तव में भारत में रहने वाले हर एक व्यक्ति का डीएनए एक समान है, भारत में रहने वाला हर एक व्यक्ति हिंदू है, भले ही वह किसी भी प्रकार की पूजा पद्धति को, रीति रिवाज को, संस्कृति को, परंपराओं को माने, कोई दिक्कत नहीं है। वह जिस भी परंपरा को मानना चाहता है, मान सकता है किंतु यह ना कहे कि वह भारत के निवासियों से, हिंदुओं से भिन्न है। हमारी पूजा पद्धति बदली है, हमारी मान्यताएं बदली हैं, हमारी विचारधारा बदली है, धर्म नहीं बदला है, हमारी भाषा बदली है, हमारे पहनावे और वेशभूषा बदली है, हमारी मातृभूमि नहीं बदली है, हमारा डीएनए नहीं बदला है। हम इसी मातृभूमि पर एक साथ खेल कर बड़े होते हैं, एक ही वायु में सांस लेते हैं, एक ही नदी का पानी पीते हैं, एक ही भूजल का पानी पीते हैं, एक ही खेत का भोजन करते हैं, उसके बावजूद ऐसी विभिन्नताएं? क्या मायने हैं इन सबके?
और अब हमे यह बात भी याद रखनी होगी कि अब इन कट्टरपंथियों ने, इन विभाजनकारी देश विरोधी ताकतों ने अपनी नीति बदल दी है। अब ये हर मामले में महिलाओं को, लड़कियों को, किसानों को ही आगे करेंगे क्योंकि इन्हें भी पता है कि वर्तमान सरकार इन सबके विरुद्ध बल प्रयोग नहीं करेगी इसीलिए यह अब खुद पर्दे के पीछे रहेंगे और महिलाओं तथा किसानों को आगे रखकर अपनी महत्वाकांक्षाओं को अंजाम देंगे। जिस तरह से किसानों के नाम पर दिल्ली में लाल किले पर दंगे किए, जिस तरह से साल भर दिल्ली बॉर्डर पर सड़क घेरकर बैठे रहें, आम लोगों को आने जाने से रोकते रहे, किसानों के नाम पर किसानों को बदनाम करते रहें। वास्तव में किसान अपने खेतों में ही थे, यूपी, एमपी, महाराष्ट्र और अन्य राज्यो में कोई भी किसान किसी प्रकार का आंदोलन नहीं कर रहा था। इन सभी आंदोलनकारियों ने वास्तव में किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तानी आंदोलन ही चलाया था। यह लड़ाई किसानों की नहीं, खालिस्तानियों की थी। सरकार यदि इसी प्रकार से झुकती रही, तो इनकी हिम्मत बढ़ेगी, इनकी महत्वाकांक्षा बढ़ेगी, इनका साहस बढ़ेगा और यह इसी तरह से अन्य मुद्दों को उठाते रहेंगे।
आने वाले एक-दो वर्षो में संसद में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश होने वाला है उसके लागू होने पर फिर इसी प्रकार से आंदोलन चलाएंगे, फिर जनसंख्या नियंत्रण कानून आएगा, उसके विरुद्ध फिर इसी प्रकार से आंदोलन चलाएंगे। आखिर कब तक सरकार झुकती रहेगी?
सरकारों को अब इस पर ध्यान देना होगा। इन सभी देश विरोधी तत्वों के विरुद्ध कार्यवाई करनी होगी। इनकी फंडिंग कहां से हो रही है, कौन कर रहा है, साथ ही अपने देश में रहकर कौन-कौन इन लोगों के साथ मिला हुआ है, इन सभी जांच करनी चाहिए।
हम लोगों ने सरकार को बहुमत देकर के सत्ता में भेजा है, इसलिए नहीं कि वह इन लोगों की मनमानी देखती रहे, उसे अब कदम उठाने होंगे। और यदि उसे भी वोट बैंक की चिंता है तो फिर उसे भी सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। फिर भाजपा और कांग्रेस में अंतर क्या रहेगा जब दोनों की मानसिकता एक हो जाएगी और देश विरोधी तत्वों के आगे इस तरह से झुकने लगेंगे। पिछले 3 वर्षों से लगातार सरकार झुकती जा रही है। जैसी हिम्मत, जिस साहस और जिन वादों के आधार पर सत्ता में आई थी, उन्हें भूल कर अब वोट बैंक के लिए राजनीति करने लगी है। देश हित को पीछे रख कर पार्टी हित सर्वोपरि मानने लगी है। प्रधानमंत्री को शायद अब राष्ट्रहित से अधिक खुद की छवि के बारे में अधिक चिंता हो रही है। शायद वह भी अब नेहरू के कदमों पर चलने लगे हैं। उन्हें अहंकार से बचना होगा। देशहित को सर्वोपरि मानकर निडर होकर निर्णय लेने होंगे, राजनीति करने के लिए जनता ने उन्हें संसद नही भेजा।