पिट्स इंडिया एक्ट 1784 क्या था | चार्टर एक्ट 1793 और चार्टर एक्ट 1813 in hindi



नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में पिट्स इंडिया एक्ट 1784 का अध्ययन करेंगे, जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकृत भारतीय क्षेत्र पर ब्रिटिश ताज के स्वामित्व का प्रथम वैधानिक दस्तावेज कहा जाता है। इसके अलावा 1793 में पारित हुए चार्टर एक्ट और 1813 में लाए गए चार्टर एक्ट का भी अध्ययन करेंगे, उसके प्रावधानों को भी समझेंगे।

ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में अभिगृहीत किए गए क्षेत्र पर शासन के लिए 1773 ई० में रेग्युलेटिंग एक्ट लागू किया था। जिसके जरिए बंगाल के गवर्नर को कंपनी द्वारा अधिकृत समस्त भारतीय क्षेत्र का गवर्नर जनरल बना दिया गया था। साथ ही उसकी सहायता के लिए 4 सदस्यों की एक परिषद (काउंसिल) की भी स्थापना की गई। बंबई और मद्रास के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया। इस एक्ट के जरिए बनने वाले प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थे। 
इसी एक्ट के जरिए 1774 ई० में कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) की स्थापना हुई थी। जिसके प्रथम न्यायाधीश एलिजा इम्पे थे।
इस एक्ट में समय के साथ अनेक बार सुधार होते रहे हैं। सर्वप्रथम इस एक्ट में सुधार 1781 ई० हुआ था जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट या बंदोबस्त कानून कहा जाता है। वास्तव में इस सुधार के जरिए सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को सीमित किया गया था। इसने गवर्नर जनरल के अधिकार क्षेत्र और उसकी शक्तियों को विस्तारित किया था। इसके अनुसार गवर्नर जनरल इन काउंसिल, काउंसिल के अन्य सदस्यों एवं कंपनी के कर्मचारियों पर उनके कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं की जा सकेगी।

इसी कड़ी में 1784 ई० में ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के व्यापारिक एवं राजनैतिक कार्यों को विभाजित करने के लिए एक और सुधार किया था, इसी एक्ट को पिट्स इंडिया एक्ट कहा जाता है। वास्तव में इसी एक्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकृत भारतीय क्षेत्र पर ब्रिटिश ताज के स्वामित्व को वैधानिक मान्यता दी थी। 

यह अधिनियम दो कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण था- पहला तो यह कि इसने भारत में कंपनी द्वारा अधिकृत क्षेत्र को प्रथम बार ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र कहा। 
 दूसरा कारण यह है कि इसने ब्रिटिश सरकार को भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों एवं इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान कर दिया।

इस एक्ट के प्रावधान निम्नवत हैं-
★ इस एक्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय क्षेत्र पर क्रियाकलापों को दो भागों में बांट दिया- व्यापारिक एवं राजनैतिक।

★ ब्रिटिश सरकार ने इस एक्ट के जरिए कंपनी के निदेशक मंडल को भारत में व्यापारिक क्रियाकलापों की अनुमति तो दे दी परंतु भारतीय प्रशासन और राजनैतिक कार्यों के प्रबंधन का अधिकार छीन लिया।

★ भारत में राजनैतिक कार्यों के प्रबंधन के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक 6 सदस्यीय नियंत्रण बोर्ड (Board of Control) की स्थापना की।

★ इस नियंत्रण बोर्ड को ब्रिटिश अधिकृत समस्त भारतीय क्षेत्र के नागरिक, सैन्य एवं समस्त राजस्व संबंधी गतिविधियों का नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण की शक्तियां प्राप्त थी।

इसके बाद भी रेग्युलेटिंग एक्ट में समय-समय पर अनेक सुधार हुए हैं। 1786 ई० में लॉर्ड कॉर्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाने के लिए इस एक्ट में पुनः सुधार किया गया था, जिसके जरिए गवर्नर जनरल को विशेष परिस्थितियों में अपनी काउंसिल के निर्णयों को मानने अथवा ना मानने का अधिकार दिया गया और साथ ही गवर्नर जनरल को भारत में ब्रिटिश सेना के सेनापति (कमांडर इन चीफ) का पद भी दिया गया, परंतु यह सुधार केवल कार्नवालिस के लिए था। जिसे 1793 के चार्टर एक्ट के जरिए भविष्य में बनने वाले सभी गवर्नर जनरलों के लिए विस्तारित कर दिया गया।

इस चार्टर एक्ट के कुछ प्रावधान निम्नवत हैं
★ इसने लॉर्ड कॉरवालिस को दिए गए विशेषाधिकार को भविष्य के सभी गवर्नर जनरलों एवं अन्य प्रांतों के गवर्नरों तक भी विस्तारित कर दिया।

★ इस एक्ट ने गवर्नर जनरल को अधीनस्थ प्रांतों बंबई और मद्रास के गवर्नरों के ऊपर अधिक नियंत्रण प्रदान किया।

★ इसने ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में व्यापार के एकाधिकार को अगले 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया।

★ इसने पिट्स इंडिया एक्ट 1784 के जरिए गठित हुए बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों एवं इसके कर्मचारियों को भारत से प्राप्त होने वाले राजस्व से वेतन देने का प्रावधान किया।

★ इस चार्टर एक्ट में ब्रिटिश अधिकृत भारतीय क्षेत्रों के प्रशासन एवं न्याय व्यवस्था के लिए लिखित कानूनी विधियों का प्रावधान किया गया।

★ इस एक्ट के जरिए ब्रिटिश सरकार द्वारा लाए गए कानूनों एवं सभी विनियमों की व्याख्या का अधिकार न्यायालय को प्रदान किया गया।

चार्टर एक्ट 1793 के पारित होने के 20 वर्ष बाद एक अन्य चार्टर एक्ट 1813 पारित हुआ। इसके जरिए भारतीय क्षेत्र में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अधिकार को भी सीमित कर दिया गया।
 चार्टर एक्ट 1813 के कुछ प्रावधान निम्नवत हैं
★ इस चार्टर एक्ट के माध्यम से भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया अर्थात अब ब्रिटेन की अन्य कंपनियां भी भारत में व्यापार कर सकेंगी। किंतु चाय के व्यापार एवं चीन के साथ होने वाले व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार बरकरार रखा गया।

★ इस एक्ट के जरिए भारत से प्राप्त होने वाले राजस्व से धन खर्च करने के लिए नियम एवं पद्धतियां बनाई गई।

★ इस एक्ट ने बंगाल, मुंबई तथा मद्रास की प्रेसिडिंसियों द्वारा बनाए जाने वाले कानूनों को ब्रिटिश संसद से पारित करवाना अनिवार्य बना दिया।

★ इस एक्ट ने ईसाई मिशनरियों को भारत आकर लोगों को ईसाई धर्म के प्रति आकर्षित करने की अनुमति प्रदान की अर्थात भारत में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार का मार्ग स्पष्ट किया, भारत में धर्मांतरण का मार्ग प्रशस्त किया।

★ इसी चार्टर एक्ट ने कंपनी द्वारा अधिकृत ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों में पश्चिमी शिक्षा के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था की।

★ इस कानून के जरिए भारत की स्थानीय ब्रिटिश सरकारों को नागरिकों पर टैक्स लगाने का अधिकार प्रदान किया गया और टैक्स का भुगतान न करने पर दंड की भी व्यवस्था की गई।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि जहां पिट्स इंडिया एक्ट 1784 ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के क्रियाकलापों को व्यापारिक एवं राजनैतिक आधार पर दो भागों में विभाजित किया, वहीं चार्टर एक्ट 1813 ने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकृत किए गए भारतीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश ताज के स्वामित्व को स्पष्ट रूप से स्थापित और मजबूत किया। साथ ही कम्पनी द्वारा अधिकृत भारतीय क्षेत्रों पर पूर्ण रूप से ब्रिटिश ताज के अधिकार की ओर कदम बढ़ा दिये।

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