भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति किस अनुच्छेद में है? राष्ट्रपति क्षमादान की शक्ति का प्रयोग कैसे करता है?



नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आपका हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में हम भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति को जानेंगे। किस अनुच्छेद के तहत और किसी  अपराध के लिए दोषी करार अपराधियों को राष्ट्रपति किस प्रकार क्षमादान दे सकता है, ये सारी चीजें इस आर्टिकल में आपको जानने को मिलेगी।



राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारतीय गणराज्य में संविधान के तहत संसदीय प्रणाली अपनाई गई है, जिसमे राष्ट्रपति को अमेरिका या रूस जैसे देशों के राष्ट्रपतियों की तुलना में बहुत ही सीमित या ऐसे कहें कि लगभग नगण्य शक्तियां या अधिकार दिए गए हैं, जिसमे राष्ट्रपति स्वतंत्रता पूर्वक अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है, बिना किसी बाध्यता या सलाह के कोई निर्णय ले सकता है। इसी तरह राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति भी है, जिसका प्रयोग भी राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श से ही कर सकता है, न कि स्वतंत्रतापूर्वक या अपने विवेक से।



आइए अब राष्ट्रपति के क्षमादान की इस शक्ति के प्रभाव, प्रयोग करने की शर्तें और उसके महत्त्व को विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।

सबसे पहले तो हम ये जानते हैं कि भारत का राष्ट्रपति किस अनुच्छेद के तहत और किन अपराधों में राहत देने के लिए क्षमादान की शक्ति का प्रयोग कर सकता है?


संविधान के अनुच्छेद 72 में भारत के राष्ट्रपति को कुछ विशेष अपराधों में सजा पाए हुए अपराधियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गई है, जैसे कि-
(i) संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दोषी करार अपराधी,
(ii) सैन्य न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिए दोषी करार अपराधी,
(iii) मृत्यु दंड पाया हुआ अपराधी।



राष्ट्रपति की क्षमादान की यह शक्ति न्यायपालिका के वाद क्षेत्र से परे है। यह राष्ट्रपति की एक कार्यकारी शक्ति है, इसमें राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश की भांति व्यवहार नहीं करता। राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत ऐसे मसलों पर न्यायालय की भांति वाद विवाद नहीं किया जा सकता। 
राष्ट्रपति क्षमादान की इस शक्ति का प्रयोग दो प्रकार की परिस्थितियों में करता है – 
(i) न्यायालय के दंड निर्धारण में विधि के प्रयोग में होने वाली किसी न्यायिक गलती को सुधारने के लिए,
(ii) यदि राष्ट्रपति अपराधी को मिले दंड को उसके अपराध की तुलना में अधिक कड़ा समझता हो तो उसका बचाव करने के लिए या उसे राहत देने के लिए।



राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति में कौन-कौन सी बातें शामिल हैं या राष्ट्रपति अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग किस रूप में और किस प्रकार से करता है, इसका विस्तार पूर्वक विवरण नीचे दिया जा रहा है-

1. क्षमा: 

इसमें दंड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी करार अपराधी को सभी प्रकार के दंड, सभी प्रकार के दंड आदेशों और सभी प्रकार की बंदिशों से पूर्णत: मुक्त कर दिया जाता है।

2. लघुकरण: 

लघुकरण का अर्थ है कि दोषी करार अपराधी को मिले दंड का स्वरूप बदल देना। जैसे कि मृत्युदंड की सजा पाए अपराधी की सजा का लघुकरण कठोर कारावास में परिवर्तित करना, जिसे बाद में साधारण कारावास में बदला जा सकता है।

3. परिहार: 

परिहार का अर्थ है कि दोषी करार अपराधी के दंड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम करना। जैसे कि 10 वर्ष के कठोर कारावास को 5 वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना।

4. विराम: 

राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति में विराम का अर्थ है- किसी दोषी करार अपराधी को मिली सजा में किन्ही विशेष परिस्थितियों के कारण परिवर्तन करना। जैसे कि शारीरिक अपंगता अथवा महिला अपराधियों को गर्भावस्था की अवधि के कारण।

5. प्रविलंबन: 

इसका अर्थ है कि दोषी करार अपराधी की मृत्युदंड जैसी सजा पर अस्थायी रोक लगाना। इसका उद्देश्य है कि दोषी व्यक्ति को क्षमा याचना अथवा दंड के स्वरूप में परिवर्तन करने की याचना करने के लिए समय देना।


उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति का विभिन्न मामलों में अध्ययन कर कुछ सिद्धांत बनाएं हैं, जैसे कि –


1. राष्ट्रपति अपने आदेश का कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है,

2. जब राष्ट्रपति ने एक बार क्षमादान की याचना रद्द कर दी हो तो उनके पास दूसरी याचिका दायर नहीं की जा सकती,

3. दया की याचना करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है,

4. राष्ट्रपति न्यायालय में पेश किए गए साक्ष्यों का पुन: अध्ययन कर सकता है और उसका विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है,

5. राष्ट्रपति अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह से ही करेगा,

6. राष्ट्रपति न केवल किसी अपराधी को मिली सजा पर राहत दे सकता है, बल्कि किसी संभावित भूल पर भी राहत दे सकता है, बशर्ते उसके स्पष्ट प्रमाण हों,

7. राष्ट्रपति को क्षमादान की इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए उच्चतम न्यायालय से किसी प्रकार की सलाह अथवा दिशा निर्देश की आवश्यकता नहीं है,


8. राष्ट्रपति की क्षमादान की इस शक्ति पर कोई भी न्यायिक समीक्षा नही की जा सकती बशर्ते राष्ट्रपति का निर्णय विवेकरहित, स्वेच्छाचारी अथवा भेदभाव पूर्ण न हो।


अनुच्छेद 161

संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्यों के राज्यपालों के पास भी राज्य विधि के अंतर्गत दंड पाए अपराधी को राहत देने के लिए क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है। 


जिसके द्वारा राज्यपाल भी मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले राज्य मंत्रिमंडल की सलाह पर राज्य विधि के अंतर्गत दिए गए दंड को क्षमा कर सकता है, या अस्थायी रूप से रोक लगा सकता है, या सजा के स्वरूप को परिवर्तित अथवा सजा की अवधि को कम कर सकता है। राज्य विधि के विरुद्ध किए गए किसी अपराध में दोषी करार व्यक्ति की सजा को निलंबित कर सकता है या फिर दंड की अवधि परिवर्तित कर सकता है, परंतु राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियां राष्ट्रपति के क्षमादान की शक्ति की तुलना में सीमित हैं। 

जैसे– 

(i) राष्ट्रपति सैन्य अदालत द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है, परंतु राज्यपाल नही।
(ii) राष्ट्रपति मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है, परंतु राज्यपाल नही। राज्यविधि द्वारा दिए गए मृत्युदंड में भी क्षमा करने की शक्ति केवल राष्ट्रपति में निहित है। हालांकि राज्यपाल मृत्युदंड की सजा को निलंबित कर सकता है, परंतु क्षमा नहीं कर सकता।

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