नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीयता में क्या अंतर है? क्यों भारत के राष्ट्रवाद को यूरोपीय देशों की भांति राष्ट्रवाद ना कह कर राष्ट्रीयता कहना अधिक प्रासंगिक है? भारत का राष्ट्रवाद किस प्रकार से यूरोप के राष्ट्रवाद से भिन्न है?
राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद को समझने के लिए हमें राष्ट्रवाद के सिद्धांतों को जानना होगा। यूरोप में राष्ट्रवाद किस प्रकार से उत्पन्न हुआ, राष्ट्रवाद जैसी भावना राष्ट्रवाद जैसे सिद्धांत उत्पन्न होने के पीछे क्या कारण थे, किन परिस्थितियों में उत्पन्न हुआ, इसका इतिहास क्या है और यह क्यों भारत के राष्ट्रवाद से भिन्न है, ये सभी हम इस आलेख के माध्यम से समझेंगे।
भारतीय राष्ट्रवाद
बीते कुछ वर्षों से भारत में राष्ट्र प्रथम, राष्ट्र प्रेम एवं राष्ट्रहित की अवधारणा तेजी से पनप रही है। पश्चिमी एवं वामपंथी लेखक इस राष्ट्रवाद को अंध राष्ट्रवाद या अंध विषैले राष्ट्रवाद की संज्ञा दे रहे हैं। उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा कि जिस सिद्धांत के आधार पर वह इसे राष्ट्रवाद की संज्ञा दे रहे हैं, असल में यह उस राष्ट्रवाद पर आधारित है ही नहीं, यह तो स्वत्व की भावना राष्ट्रप्रेम की भावना से प्रेरित है। इस पर यूरोपीय राष्ट्रवाद की कोई भी परिभाषा लागू नहीं होती। यहां लोगों में उत्पन्न हो रही राष्ट्रवाद की भावना देशभक्ति पर आधारित है यहां का राष्ट्रवाद यूरोप की भांति नस्लभेद, कट्टरता, असहिष्णुता, अल्पसंख्यक उत्पीड़न आदि तनाव एवं उग्रता पैदा करने वाले एकल सांस्कृतिक राष्ट्रवादिता की तरह नहीं है, इसलिए भारत के इस राष्ट्रवाद को राष्ट्रवाद ना कह कर राष्ट्रीयता कहना अधिक प्रासंगिक है।
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यूरोपीय राष्ट्रवाद का इतिहास
राष्ट्रवाद को समझने के लिए सबसे पहले हमें राष्ट्रवाद का इतिहास जानना होगा हम सभी यह जानते हैं कि राष्ट्रवाद शब्द यूरोप की उपज है एवं राष्ट्रवाद की जो परिभाषा स्थापित की गई है वह भी यूरोप की परिस्थितियों पर आधारित है और जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि यूरोप एकल संस्कृति के देशों का समूह है, वहां लगभग ज्यादातर लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं या ऐसे कहें कि यूरोप एक ईसाई बहुल महाद्वीप है।
18 वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रवाद शब्द का जन्म हुआ था इसके जनक जान गाटफ्रेड हर्डर थे जिनके सिद्धांतों के आधार पर सर्वप्रथम जर्मन राष्ट्रवाद का गठन हुआ था। इस राष्ट्रवाद शब्द और राष्ट्रवादी विचारधारा के उत्थान के पीछे यूरोप में प्रारंभ हुई औद्योगिक क्रांति को वजह माना जाता है।
इस क्रांति के फलस्वरूप यूरोपीय व्यापारियों के व्यापार में जबरदस्त वृद्धि हुई थी। नए-नए बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना होने से सस्ती दरों पर वस्तुओं का तेजी से उत्पादन बढ़ा, जिसकी वजह से यूरोपियों के पास उत्पादित वस्तुओं की संख्या तेजी से बढ़ने लगी तो व्यापार भी एक स्थान से दूसरे स्थान तेजी से फैला, एक संस्कृति से दूसरे संस्कृति तक इसका विस्तार होने लगा। इससे वहां के लोगों में एक प्रकार से दूसरी संस्कृति के प्रति प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा हुई। अपनी संस्कृति के उत्थान अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ सिद्ध करने के चक्कर में वहां कुछ ऐसी भावनाएं लोगों के अंदर पैदा होने लगी जिसके आधार पर एक भाषा बोलने वालों एक संस्कृति को मानने वालों के मन में दूसरी भाषा बोलने वालों एवं दूसरी संस्कृति को मानने वालों से भिन्नता का भाव पैदा होने लगा।
स्वयं को एवं स्वयं की संस्कृति को श्रेष्ठ सिद्ध करने के चक्कर में वहां एकल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जन्म हुआ, एक भाषा, एक नस्ल एवं एक संस्कृति को मानने वाले लोगों में सामूहिक रूप से एक राष्ट्र बनाने की होड़ मच गई जिसके फलस्वरूप सर्वप्रथम जर्मन साम्राज्य का उदय हुआ और इसी प्रकार एक समान भाषा, एक समान नस्ल, एक समान विचारधारा एवं एक समान संस्कृति आधार पर वहां अनेक अनेक राष्ट्र बन गए।
इस प्रकार के एकल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार पर उत्पन्न हुआ जर्मन राष्ट्रवाद आगे चलकर नाजी राष्ट्रवाद में बदल गया जिसके परिणाम स्वरूप इसमें कट्टरता, असहिष्णुता, नस्लभेद, अल्पसंख्यक उत्पीड़न जैसी बुराइयां आ गईं। हिटलर की तानाशाही तो सबको पता ही है कि उसने किस प्रकार से यहूदियों का सामूहिक नरसंहार किया था इसी एकल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के कारण।
यूरोपीय राष्ट्रवाद का प्रारंभिक स्वरुप
प्रारंभ में यह राष्ट्रवाद समानता एवं लोकतांत्रिक विचारों से प्रेषित था किंतु शीघ्र ही इसमें कट्टरता, असहिष्णुता, नस्लवाद, साम्राज्यवाद, तानाशाही, विस्तारवाद एवं युद्ध का समावेश हो गया। अखिल जर्मन राष्ट्रवाद, जारवादी साम्राज्यवाद, जापानी सैन्यवाद, फासीवाद और आधुनिक समय में साम्यवाद इसके प्रमाण हैं।
19वीं शताब्दी तक एकल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जननी यूरोप में कई प्रकार के राष्ट्रवादी विचार उत्पन्न हो चुके थे, जिसमें मानवतावादी राष्ट्रवाद, नस्लवादी राष्ट्रवाद, क्षेत्रीय राष्ट्रवाद, संवैधानिक राष्ट्रवाद, उदारवादी राष्ट्रवाद, आध्यात्मिक राष्ट्रवाद एवं लोकतांत्रिक राष्ट्रवाद प्रमुख हैं। इनसभी का वर्गीकरण करने पर दो प्रकार के राष्ट्रवाद- आक्रामक राष्ट्रवाद एवं उदार राष्ट्रवाद प्राप्त होते हैं।
यूरोपीय राष्ट्रवाद vs भारतीय राष्ट्रवाद
यूरोप की लगभग सभी राष्ट्रवादी विचारधाराएं व्यक्तिवादी अवधारणाओं पर आधारित हैं जबकि भारत में उत्पन्न हो रही राष्ट्रवादी विचारधारा आध्यात्मिक अवधारणाओं पर आधारित है। भारतीय राष्ट्रवाद मौलिक है जबकि यूरोपीय राष्ट्रवाद प्रतिक्रिया की उपज है। भारतीय राष्ट्रवाद राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्रहित पर आधारित है जबकि पश्चिमी राष्ट्रवाद सैद्धांतिक एवं अप्रवर्तनीय है। भारतीय राष्ट्रवाद समावेशी है जबकि पश्चिमी राष्ट्रवाद कट्टरता एवं उग्रता से पूर्ण है।
यही कारण है कि राष्ट्रवाद की आधुनिक एवं यूरोपीय परिभाषाओं के आधार पर भारत जैसे बहुसांस्कृतिक राष्ट्र के राष्ट्र प्रेम की भावना को राष्ट्रवाद कहना उचित नहीं है बल्कि राष्ट्रीयता कहना अधिक प्रासंगिक है।
पश्चिमी लेखक भारत में उत्पन्न हो रहे इस राष्ट्रवाद को अंध राष्ट्रवाद इस आधार पर कहते हैं कि यहां कुछ समुदायों में कट्टरता है परंतु यह कट्टरता राष्ट्रवाद से उत्पन्न हुई कट्टरता नहीं है बल्कि सांप्रदायिक कट्टरता है, जातीय कट्टरता है और इसका इतिहास सदियों पुराना है, यह कोई आज की नई नहीं है और सच कहें तो यह भी यूरोप की एकल संस्कृतिवाद की ही उपज है, जो भारत में औपनिवेशिक शासन की “फूट डालो और राज करो” नीति से उत्पन्न हुई है और इसी नीति से भारत में आज भी कई जगह जातीय कट्टरता एवं जातिभेद बरकरार है जिसके आधार पर आज कई दलों की राजनीति चलती है। आज भी भारत में अनेक राजनैतिक दल अंग्रेजों की उसी “फूट डालो और राज करो” नीति का अनुसरण कर रहे हैं पर यह सब भारत में उत्पन्न हो रही इस नई राष्ट्रीयता की उपज नहीं है बल्कि यूरोपीय श्रेष्ठवाद की उपज है।
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इसके विपरीत भारतीय राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता कहें तो यह इन सभी विभिन्नता उत्पन्न करने वाले वादो पर भारी पड़ रही है। आज भारतीयों में समय के साथ-साथ धीरे-धीरे इस तरह के भेद एवं विभिन्नता उत्पन्न करने वाली एकल संस्कृतिवाद पर भारत की राष्ट्र प्रेम एवं देशभक्ति पर आधारित समावेशी तथा समय के साथ प्रवर्तनीय बहु सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अधिक प्रभावी हो रही है।
यहीं से हमें राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीयता का अंतर समझना होगा।
राष्ट्रवाद जो दूसरों पर अपना प्रभाव स्थापित करने की कोशिश करता है और किसी एक व्यक्तिवादी विचारधारा या एकल संस्कृति केंद्रित होता है तो वहीं राष्ट्रीयता राष्ट्रप्रथम के विचार, समर्पण एवं मौलिकता से उत्पन्न होती है।
राष्ट्रवाद जो अपने मूल सिद्धांतों पर अडिग होता है और उग्रता एवं कट्टरता को बढ़ावा देता है तो राष्ट्रीयता राष्ट्रहित को प्राथमिकता देती है एवं नागरिकों में उदारता, विनम्रता एवं सहिष्णुता का भाव, एक समानता का भाव पैदा करती है, स्वतंत्रता का भाव पैदा करती है।
राष्ट्रवाद प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होता है तो राष्ट्रीयता स्वत: हृदय की गहराइयों से उत्पन्न होती है, मौलिक एवं आध्यात्मिक होती है, सभी का कल्याण चाहती है, किसी पर किसी भी तरह का दबाव नहीं डालती।
इसलिए राष्ट्रीयता राष्ट्रवाद से भिन्न है विशेषकर यूरोप की एकल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से