रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 और एक्ट ऑफ सेटलमेंट 1781 in hindi



नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में रेग्युलेटिंग एक्ट: 1773 पर चर्चा करेंगे। साथ ही रेगुलेटिंग एक्ट में सुधार के लिए 1781 में पारित हुए एक्ट ऑफ सेटलमेंट (बंदोबस्त कानून) को भी समझेंगे।

 ब्रिटिश सरकार ने 1773 ई० में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए एक नियमन कानून अर्थात रेग्युलेटिंग एक्ट बनाया था। यह ब्रिटिश सरकार का भारत के मामलों में प्रथम प्रत्यक्ष हस्तक्षेप था और इसी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से राजनीतिक सत्ता छीनने के लिए ब्रिटिश सरकार का रास्ता साफ किया था।


ब्रिटिश सरकार को यह कानून लाने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी को भारतीय प्रशासन के तरीकों एवं यहां की कठिनाइयों के बारे में जानकारी नहीं थी और इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी सिर्फ पैसों के लालची थे, वे धन कमाने के लिए भी किसी भी हद तक जा सकते थे। कंपनी के लिए धन कमाने एवं अपने लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होंने बंगाल का अत्यधिक शोषण किया था। यहां से सस्ते में कच्चा माल ले जाकर ब्रिटेन की कंपनियों में वस्तुओं का उत्पादन कर यहां वापस लाकर ऊंचे दामों में बेचा जाता था, जिससे बंगाल के निवासियों का दोहरा शोषण किया गया था। इस वजह से बंगाल के निवासियों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह नष्ट हो गई थी और इसी वजह से 1771-13 के बीच बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था, जिसमे लाखों लोग भुखमरी में मारे गए थे। 

कंपनी के कर्मचारियों में पैसों के प्रति इस लालच  को देखकर ही ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के लिए कुछ नियम निर्धारित किए थे। आइए जानते हैं क्या हैं रेगुलेटिंग एक्ट के प्रावधान-

★ कंपनी के डायरेक्टरों को निर्देश दिया गया कि वे भारत में सैनिक, असैनिक, प्रशासनिक व राजस्व से संबंधित सभी प्रकार के साक्ष्यों एवं योजनाओं को ब्रिटिश सरकार के समक्ष प्रस्तुत करें। इसी एक्ट में एक नए प्रशासनिक ढांचा तैयार करने की व्यवस्था की गई। 

★ इसी एक्ट के माध्यम से कम्पनी की बंगाल में स्थापित इकाई के गवर्नर को भारत में कंपनी के अधीन सभी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बना दिया गया। बंबई और मद्रास के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया। इस एक्ट के तहत बनने वाले प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थे।

★ गवर्नर जनरल की सहायता के लिए 4 सदस्यों की एक परिषद अर्थात काउंसिल की स्थापना की गई।

★ इस अधिनियम के तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार तथा रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।

★ इसी एक्ट के अंतर्गत 1774 ई० में कलकत्ता में एक उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) की स्थापना की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे। इस प्रकार बनने वाले प्रथम न्यायाधीश एलिजा इम्पे थे।

★ इस एक्ट के माध्यम से कंपनी के प्रत्येक अधिकारी के लिए यह अनिवार्य हो गया कि अपना कार्यकाल पूरा करके इंग्लैंड लौटते समय वे अपनी संपत्ति का ब्यौरा देंगे।


1781 ई० में ब्रिटिश सरकार ने रेगुलेटिंग एक्ट में उत्पन्न हो रही कुछ खामियों के सुधार के लिए एक एक्ट पारित किया, जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट या बंदोबस्त कानून कहा जाता है। वास्तव में इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को सीमित किया गया था।
 इस एक्ट के कुछ प्रावधान निम्नवत हैं –
★ इस संशोधन कानून के जरिए राजस्व से संबंधित मामले एवं राजस्व वसूली से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया गया।

★ इस कानून में यह व्यवस्था भी की गई कि अन्य प्रांतों के न्यायालयों की अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर नहीं होगी बल्कि गवर्नर जनरल इन काउंसिल के यहां दायर होगी।

★ इसी संशोधन कानून के जरिए गवर्नर-जनरल-इन-काउंसिल को प्रांतीय न्यायालयों और अन्य प्रांतों के काउंसिलों के नियम कानून बनाने के लिए अधिकृत किया गया।


★ इस कानून के जरिए कोलकाता के सभी निवासियों को सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कर दिया गया।

★ इसी संशोधन में यह व्यवस्था भी की गई कि सर्वोच्च न्यायालय हिंदुओं के मुकदमों की सुनवाई उनके निजी कानूनों के हिसाब से और मुसलमानों के मुकदमों की सुनवाई उनके निजी कानूनों के अनुसार करेगा।

★ इस संशोधन में ही गवर्नर जनरल तथा काउंसिल के सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से मुक्त कर दिया गया अर्थात उनके ऐसे सभी कृत्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट सुनवाई नहीं कर सकेगा जो उन्होंने कार्यकाल के दौरान किए हों। साथ ही कंपनी के अन्य कर्मचारियों को भी सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया गया।


Regulating act में समय के साथ अनेक बार संशोधन किया गया था। इसी कड़ी में 1781 के एक्ट ऑफ सेटलमेंट के बाद 1784 ई० में पिट्स इंडिया एक्ट पारित किया गया, जिसके जरिए कंपनी के भारतीय क्षेत्रों में क्रिया-कलापों को दो भागों में विभाजित कर दिया गया- व्यापारिक क्रियाकलाप एवं राजनैतिक क्रियाकलाप। व्यापारिक क्रियाकलापों को कंपनी के निदेशक मंडल के ही पास रखा गया किंतु राजनैतिक क्रियाकलापों के प्रबंधन के लिए ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड में एक 6 सदस्यीय नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की। इसी पिट्स इंडिया एक्ट को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकृत भारतीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश ताज के स्वामित्व को प्रमाणित करने वाला प्रथम दस्तावेज माना जाता है।

इसके बाद Regulating act में 1786 ई० में एक संशोधन और किया गया था, जब लार्ड कर्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया था। उसने यह पद स्वीकार करने के लिए 2 शर्तें रखी थी, जो निम्नवत हैं –
1.  गवर्नर जनरल को विशेष मामलों में सुनवाई के लिए अपनी काउंसिल के अन्य सदस्यों के निर्णयों को मानने अथवा ना मानने का अधिकार प्राप्त हो।

2.  साथ ही गवर्नर जनरल को सेनापति अर्थात कमांडर इन चीफ का पद भी दिया जाए।

हालांकि यह संशोधन केवल कॉर्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त करने के लिए किया गया था, लेकिन 1793 ई० में चार्टर कानून के जरिए इस संशोधन को बंगाल के भविष्य में बनने वाले सभी गवर्नर जनरलों और अन्य प्रांतों के गवर्नरों को भी दे दिया गया। इसी चार्टर एक्ट के माध्यम से भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार के एकाधिकार को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। साथ ही बोर्ड ऑफ कंट्रोल (नियंत्रक मंडल) के सदस्यों को भारतीय राजस्व से ही वेतन देने की व्यवस्था की गई।

One Comment on “रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 और एक्ट ऑफ सेटलमेंट 1781 in hindi”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *