सम्राट पोरस का इतिहास


क्या था सम्राट पोरस का इतिहास?

नमस्कार दोस्तों अक्सर भारतीय इतिहास में यह बताया जाता है झेलम नदी के तट पर हुए सिकंदर एवं पोरस के युद्ध में सिकंदर ने पोरस को पराजित कर बंदी बना लिया था और बंदी बनाने के पश्चात सिकंदर ने पोरस से पूछा था कि तुम्हारे साथ क्या सुलूक किया जाए, कैसा व्यवहार किया जाए? जिसके जवाब में पोरस ने कहा था मेरे साथ वही व्यवहार किया जाए जैसा कि एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। 
कहा जाता है सम्राट पोरस के इस उत्तर पर प्रसन्न होकर सिकंदर ने पोरस को उसका साम्राज्य वापस कर दिया था और उसने भारत फतह करने का अपना सपना त्याग दिया और वहीं से अपने राज्य मकदूनिया को लौट गया।
ऐसा प्रसंग प्रचलित है जो जीता वही सिकंदर पर क्या वास्तव में सिकंदर एवं पोरस के मध्य युद्ध का परिणाम वहीं था, क्या वास्तव में सिकंदर विजयी हुआ था?
 वामपंथी इतिहासकार इस प्रसंग का बहुत ही निर्लज्जता के साथ वर्णन करते हैं। भारतीय संस्कृति एवं भारतीय सम्राटों के शौर्य, उनके साहस तथा उनके पराक्रम को कुंठित करने का प्रयास इन वामपंथी इतिहासकारों ने वर्षों से किया है। हम भारतीयों को इन वामपंथी कुंठित मानसिकता वाले इतिहासकारों का इतिहास पढ़ाया जाता है, हम भारतीयों को यूनानियों का इतिहास पढ़ाया जाता है, ब्रिटानिया का इतिहास पढ़ाया जाता है, मुस्लिम आक्रांताओं का इतिहास पढ़ाया जाता है, उन लोगों का इतिहास पढ़ाया जाता है जो भारत पर आक्रमण करने आए थे और जिन्होंने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया था, भले ही वह यहां मुंह की खा कर गए हो परंतु इन वामपंथियों ने उनका ही महिमामंडन किया है।
ऐसा ही एक रहस्य जो इन वामपंथियों ने हम भारतीयों से छिपा कर रखा है यह हम भारतीयों के लिए जानना बहुत जरूरी है कि वास्तव में भारत में सिकंदर एवं पोरस के मध्य हुए युद्ध का जो परिणाम बताया जाता है, क्या वह वास्तविकता में सत्य था या केवल एक भ्रम फैलाया जा रहा है।  इतिहास को जानने के लिए कई तथ्यों और कई स्रोतों का अध्ययन करना आवश्यक होता है। हमारे मन में यह भर दिया गया है कि पश्चिम के इतिहासकारों ने जो लिख दिया, वही सत्य है। आंख बंद करके हम उन ब्रिटिश इतिहासकारों, यूनानी इतिहासकारों की बातों पर भरोसा कर लिया करते हैं।  यूनानी इतिहास में सिकंदर एवं पोरस के मध्य हुए युद्ध में सिकंदर को विजयी बताया जाता है जबकि ईरानी एवं चीनी इतिहास में इसके विपरीत पोरस को विजेता बताया गया है। यहां सिकंदर के विश्व विजेता बनने का सपना भारतीय सम्राट पोरस पर आक्रमण करने से किस प्रकार से टूट गया, यह बताया जाता है। यहां बताया गया है कि किस प्रकार सिकंदर की सेना पोरस की गज सेना से भयभीत हो गई थी, किस प्रकार से सिकंदर की सेना यहां अनजान हथियारों (भालों) से भयभीत हो गई थी। 
वास्तव में झेलम नदी के तट पर हुए हाईडेस्पीज के युद्ध में सिकंदर की सेना सम्राट पोरस से बुरी तरह पराजित हुई थी। गज पर सवार सम्राट पोरस ने सिकंदर को घोड़े पर से गिरा दिया था तब सिकंदर ने 7 फुट लंबे पोरस को अपने सामने हाथों में तलवार लिए हुए देखा था। सम्राट पोरस चाहते तो उसी समय सिकंदर का वध कर सकते थे परंतु भारतीय परंपरा के अनुसार निहत्थे दुश्मन पर भारतीय क्षत्रिय वार नहीं करते, इस वजह से उन्होंने सिकंदर को जाने दिया सिकंदर का वध नहीं किया।
 इसी बात का फायदा इन वामपंथियों ने उठाया और इतिहास का विरूपण कर दिया।
इसी युद्ध में तक्षशिला के शासक आंभी ने सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था एवं सम्राट पोरस के विरुद्ध युद्ध में सिकंदर का साथ दिया था क्योंकि आंभी की पोरस से शत्रुता थी।
सिकंदर एवं पोरस के मध्य हुए युद्ध की सच्चाई

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कई फिल्में सिकंदर एवं पोरस के युद्ध पर बनी है। मुम्बईया सिने जगत पर वामपन्थ का प्रभाव शुरू से ही था। कोई ऐतिहासिक मूवी भी बनायेंगे तो स्टोरी में हेर फेर कर के भारतीय राजा की हार और उसे कमतर ही दिखायेंगे।


साल 1941 में प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर सोहराब मोदी ने एक फ़िल्म का निर्माण किया, जिसमें खुद ही निर्देशक और लीड एक्टर भी थे। फ़िल्म का नाम था सिकन्दर

इस फ़िल्म में सोहराब मोदी पोरस की भूमिका में थे और पृथ्वीराज कपूर सिकन्दर की भूमिका में थे। मूवी के अन्त में दिखाया जाता है कि ग्रीक लुटेरा सिकन्दर (लुटेरा ही कहेंगे, उसने  शासन तो कभी किया ही नही। अपने पिता फ़िलिप की हत्या कर मकदुनिया का राजा बना और उसके बाद ग्रीस, इजिप्ट, फ़ारस वग़ैरह में नरसंहार और लूट मचाते हुए भारत भी लूटने पहुँचा था) राजा पोरस को युद्ध में हरा के बन्दी बना लेता है और पोरस से पूछता है कि तुमसे क्या सलूक किया जाये। पोरस का किरदार जवाब देता है कि वही जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। 

उसका ऐसा जवाब सुनकर सिकन्दर उससे प्रभावित होता है और उस पर तरस खा के उसे उसका  राज्य लौटा देता है और वही से वापस अपने देश मकदुनिया को निकल जाता है।

बिल्कुल वही डायलॉग जैसा वामपंथियों ने हमें बताया है। इसी फिल्म की रीमेक बनी 1965 में  और नाम दिया गया सिकन्दर_ए_आज़म

इस मूवी में पृथ्वी राज कपूर पोरस की भूमिका में थे और सिकन्दर की भूमिका में दारा सिंह थे। इस मूवी में भी पोरस वाला डायलॉग वैसे ही रखा गया था। ये मूवी भी अपने जमाने की ब्लॉकबस्टर मूवी रही थी।
अब बॉलीवुड से हॉलीवूड चलते हैं।

साल 2004 में Alexander मूवी आयी। इसमें ऐक्ट्रेस ऐंजेलीना जोली की भी विशेष भूमिका है। वो सिकन्दर की साइको माँ की भूमिका में रहती है जो बचपन से ही सिकन्दर के दिमाग में ज़हर भरती रहती है। दो घंटा बीस मिनट के बाद महाराजा पोरस से युद्ध का सीन आता है।

महाराजा पोरस की गज सेना थी जिससे सिकन्दर की घुड़सवार सेना बहुत बुरी तरह से डरी हुई थी। युद्ध में सिकन्दर की सेना के कदम उखाड़ दिये थे पोरस कि गज सेना ने।

सिकन्दर और उसकी सेना ने जीवन में कभी हाथी देखा ही नही था तो उनके लिये बहुत विपरीत परिस्थिति थी। 
अंत में सिकन्दर महाराजा पोरस से भिड़ गया। हाथी पर सवार महाराजा पोरस ने एक तीर सिकन्दर के घोड़े को मारा और एक तीर से सिकन्दर का सीना भेद दिया।

सिकन्दर अचेत हो के भूमि पे गिरा और मरणासन अवस्था में चला गया। अब उसके सिपाहसालारों ने किसी तरह सिकन्दर को पोरस से बचाया और किसी तरह सुरक्षित स्थान ले गए ताकि उसकी उचित चिकित्सा हो सके।

होश में आने के बाद से ही सिकन्दर का विश्वविजयी स्वप्न ध्वस्त हो गया और अपनी सेना को मकदुनिया वापसी हुक्म दिया। सेना भी खुश क्यूँकि उनकी हिम्मत नही थी।

हॉलीवुड वालों ने भी इस फिल्म की स्क्रिप्ट एक ब्रिटिश इतिहासकार द्वारा पूरे तथ्यों के साथ लिखी गई पुस्तक Alexender the great से तैयार की थी।

कुछ ऐसा ही व्याख्यान चीनी इतिहास एवं ईरानी इतिहास में भी है। सोचिए हम भारतीयों के सम्मुख वामपंथियों ने सिकंदर का कितना महिमामंडन किया है जबकि वास्तव में सिकंदर इस युद्ध में पराजित होकर के वापस लौटा था और एक हमारी बॉलीवुड इंडस्ट्री है जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित फिल्में भी बनाएगी तो वामपंथियों द्वारा लिखे गए इतिहास से स्क्रिप्ट तैयार करेगी।

 यह हम भारतीयों के लिए बहुत ही शर्म की बात है कि हमें बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा लिखा गया इतिहास पढ़ाया जाता है। हमें हमारी संस्कृति के गौरव, हमारे सम्राटों के गौरव, उनके शौर्य, उनके पराक्रम नहीं बताए जाते हैं हमें इन मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किए गए अत्याचार नहीं बताए जाते हैं, इन अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार नहीं बताए जाते हैं, हमें यह नहीं बताया जाता है कि जब से भारत में विदेशियों का आक्रमण शुरू हुआ, भारत की संस्कृति का भारत के वैभव का पतन होना आरंभ हो गया। जब तक भारत में किसी विदेशी का आक्रमण नहीं हुआ था, भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। सम्राट चंद्रगुप्त ने अखंड भारत का निर्माण किया था। भारत की सीमा अफगानिस्तान से लेकर म्यामार तक जाती थी, तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक जाती थी। अंग्रेजों ने कुंठित मानसिकता की वजह से भारत के टुकड़े टुकड़े कर दिए। भारत से अफगानिस्तान अलग किया, तिब्बत को अलग किया, नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान अलग किया और यह सब जानबूझकर किया ताकि हम भारतीय आपस के क्षेत्रीय झगड़े में उलझ कर रह जाएं और अपनी प्रारंभिक अवस्था दोबारा ना प्राप्त कर सकें, दोबारा उन्नति ना कर सकें, जैसी स्थिति आज से एक से डेढ़ वर्ष पूर्व थी उसे प्राप्त न कर सकें।
वर्तमान में जब भारत अपने आप में एक संप्रभु, स्वतंत्र एवं स्वच्छंद राष्ट्र बन चुका है तो भारत के विकृत इतिहास को फिर से लिखे जाने की आवश्यकता है। हमें अपने ऐतिहासिक धरोहरों, इतिहासिक विरासतों को पुनः सहेजने, पुनर्निर्मित करने की आवश्यकता है। अपनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। हमें अपने ऐतिहासिक गौरव को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। अपने इतिहास को वास्तविक तथ्यों के आधार पर पुनः संकलित करना ही होगा वरना आने वाली पीढ़ियां वर्तमान पीढ़ियों की भांति सदैव अंधेरे में ही रहेंगी, उन्हें अपने गौरवशाली अतीत पर ऐतिहासिक विरासत पर गर्व नहीं होगा जब तक कि उन्हें सच्चाई का ज्ञान ना हो और ये वर्तमान पीढ़ियों की जिम्मेदारी है की अपनी इतिहास का पुनः संकलन किया जाए। संपूर्ण विश्व के ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर भारतीय इतिहास का पुनर्निर्माण किया जाए। सिर्फ वामपंथी पश्चिम इतिहासकारों के लिखित इतिहास पर आंख बंद करके भरोसा ना किया जाए। इन वामपंथियों ने ना केवल सिकंदर का महिमामंडन किया है बल्कि इन्होंने हर उस बाह्य आक्रांता का महिमामंडन किया है जिसने भारत की संस्कृति को भारतीय विरासत को मिटाने का प्रयास किया। महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर कई बार आक्रमण किया बार बार पराजित होता था, लेकिन वर्णन सिर्फ उसकी विजय का है। मोहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर 17 बार आक्रमण किया, 16 बार पराजित हुआ परंतु वामपंथियों ने यह नहीं बताया। सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 16 बार क्षमा कर दिया था परंतु इन वामपंथियों ने इसका वर्णन नहीं किया। 17वीं बार जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया और  उन्हें बंदी बना लिया तो पृथ्वीराज चौहान ने (जो शब्दभेदी बाण चला सकते थे) बिना देखे मोहम्मद गौरी पर बाण चला दिया था, इसका वर्णन भी वामपंथियों ने इतिहास में नहीं किया।


इसी प्रकार अनेक ऐतिहासिक तथ्य हैं जो हम से छुपाए गए हैं जिन्हें इन वामपंथियों ने कुंठित मानसिकता की वजह से हम तक पहुंचने नहीं दिया परंतु आज जब हम पूर्णत: स्वतंत्र हो चुके हैं जब हमारी संप्रभुता हमारे हाथ में है तो हमें अपने ऐतिहासिक गौरव को पुनर्जीवित करना ही होगा। हमें अपने अतीत का पुनः संकलन करना ही होगा।

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