कर्नाटक के कॉलेज में हिजाब पर रोक लगाने से शुरू हुए विवाद ने पूरे देश को अपने घेरे में ले लिया है। यह विवाद पूरे देश में तेजी से फैलने लगा है। देशभर में विभिन्न कॉलेजों में विभिन्न स्थानों पर स्कूलों में हिजाब पर लगाए गए प्रतिबंध को लेकर मुस्लिम महिलाएं, मुस्लिम छात्र-छात्राएं लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
हाल ही में एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें मुस्लिम महिलाएं हिजाब पर कोर्ट में आने वाले फैसले के विपरीत होने की संभावना को देखते हुए पूर्व में ही सरकारों को आंदोलन करने की चेतावनी दे रही हैं।
इस लिंक पर क्लिक करके देखिए वह वायरल वीडियो- https://youtu.be/bF7HUt8EOSk
इस वीडियो में यह महिलाएं खुद की झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से तुलना कर रही हैं और आंदोलन के जरिए सरकार की जड़ें हिला देने की धमकी दे रही हैं। यदि इन आंदोलनों और इनके इतिहास को देखा जाए तो यह निश्चित है कि इन आंदोलनों में हिंसा अवश्य होगी। इस प्रकार से आंदोलन के नाम पर यह पूर्व में ही हिंसा करने की धमकी दे रही हैं। इनका विरोध प्रदर्शन, कोर्ट के फैसले को ना मानने की धमकी देना, यह कहां तक सही है, इसे जानने के लिए नीचे आलेख पढ़ें।
वैसे तो हम इन मुद्दों पर अधिक बोलना पसंद नहीं करते परंतु इस वीडियो को देखने के बाद कुछ प्रश्न, कुछ विचार और कुछ जवाब मस्तिष्क में उत्पन्न हो रहे थे तो बस उसी को व्यक्त कर रहे हैं। एक तो इन महिलाओं ने खुद की तुलना झांसी की रानी से करके झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के मान का, उनके सम्मान का, उनकी मर्यादा का, उनके साहस और शौर्य का अपमान किया है। जो रानी लक्ष्मीबाई युद्ध में साहस और शौर्य का प्रतीक हैं, बहादुरी का प्रतीक हैं, उनका नाम अपने प्रोपेगेंडा के तहत चलने वाले आंदोलनों में प्रयोग करना निश्चय ही अपमानजनक है।
दूसरी बात इन्हीं के कुरान में साफ-साफ लिखा है, हमने पढ़ा तो नहीं है परंतु कई मौलवियों से हमने सुना अवश्य है कि हम जिस मुल्क में रहते हैं, उस मुल्क का कानून, उस मुल्क के राजा का आदेश सर्वोपरि है। हमें उस मुल्क के कानून को मानना होगा, पूरी तरह से मानना होगा। अभी तो वर्तमान में चल रहे हिजाब विवाद का फैसला भी नहीं आया है और अभी से फैसले को ना मानने की धमकी देना कि हम पूरे देश में प्रदर्शन करेंगे और संभव है कि प्रदर्शन की आड़ में हिंसा भी हो, जैसा कि शाहीन बाग में हुआ था, जैसा कि आज मुर्शिदाबाद (बंगाल) में हुआ, जैसा कि देश के अनेक हिस्सों में हो रहा है, चेन्नई में हो रहा है, कर्नाटक में हो रहा है। प्रदर्शन की आड़ में हिंसा तो होगी ही होगी।
इस प्रकार से कोर्ट के संभावित आदेश के विपरीत होने पर पूर्व में ही अवहेलना करने की तैयारी कर लेना और देश के कानून से ऊपर शरीयत को मानना, वह शरीयत जो आज से 1400 साल पहले बनी थी, उस परिस्थिति में बनी थी और उस स्थान की परिस्थितियों को भांपते हुए बनी थी, उसको पूरे विश्व में लागू करना, जहां भी जाएंगे जहां भी रहेंगे वहां के कानूनों को भंग करके वहां के कानूनों को ना मानकर वहां अपने कानूनों को लागू करना, निश्चय ही देश द्रोह और रूढ़िवादिता का प्रतीक है।
ये भी पढ़ें – खालिस्तानी आतंकी पन्नू का देश विरोधी बयान, पन्नू ने मुस्लिमो को उर्दिस्तान नामक एक अलग देश बनाने की मांग उठाने को भड़काया
इस प्रकार की मानसिकता वो भी आज के वैज्ञानिक युग में, प्रगति के युग में, 21वीं सदी में जहां मानव विज्ञान के हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है, वहां इस प्रकार की कबीलाई सोच को लागू करने की बात करना, लागू करने का प्रयास करना, इन लोगों की अप्रवर्तनीय रूढ़िवादिता और विदेशों में इस्लाम के तथाकथित ठेकेदारों के #गजवा_ए_हिंद के सपने को पूर्ण करने के प्रयासों को दर्शाता है। ये लोग समय के साथ साथ अपने समाज में परिवर्तन नहीं चाहते हैं, और इतिहास से इन्हें समझना चाहिए कि वह हर व्यक्ति, वह हर समाज और संस्कृति जो समय और परिस्थितियों के साथ स्वयं को परिवर्तित नहीं करते हैं, उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है और यदि ये लोग भी परिवर्तनशील विचारधारा को नही अपनाते हैं तो अब इस्लाम भारत में धीरे-धीरे अपने पतन की ओर बढ़ता चला जाएगा। जिस प्रकार से इसमें कट्टरवाद पनपता जा रहा है, जिस प्रकार से आतंकवाद इसमें पनपता जा रहा है, धीरे-धीरे अब इस्लाम अपने पतन की ओर अपने विनाश की ओर जाने लगा है क्योंकि यह आज भी उसी 1400 साल पुरानी संस्कृति पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।
हैदराबाद के सांसद और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं हिजाब और नकाब भी पहनेंगी, बिजनेस भी करेंगी, कॉलेज भी जाएंगी, IAS, IPS भी बनेंगी और एक दिन भारत की प्रधानमंत्री भी हिजाब पहनने वाली महिला बनेगी। यह भला किस प्रकार से संभव है? प्रधानमंत्री तो दूर की बात है एक आईएएस या आईपीएस को ही ये लोग हिजाब पहनने पर विवश करके दिखा दें, किसी बिजनेस वूमेन को ही लोग हिजाब पहनने पर विवश करके दिखा दें तो मान लें।
इस प्रकार की संस्कृति उचित नहीं है। मनुष्य को शिक्षा इसलिए दी जाती है कि वह इस प्रकार के अंधविश्वासों, आडंबरों से बाहर निकले। इसलिए नहीं कि वह जीवन भर, कार्य के हर क्षेत्र में इन्ही मानसिकता के साथ जीता रहे।
आजकल महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, महिलाएं क्रिकेट भी खेल रही हैं, फुटबॉल, हॉकी भी खेल रही हैं, बैडमिंटन भी खेल रही हैं, हर प्रकार के खेल खेल रही हैं तो सेना में भी जा रही हैं। राजनीति में भी जा रही हैं, तो सिविल सर्विस में भी जा रही हैं। बिजनेस में भी जा रही हैं तो मेडिकल क्षेत्र में भी जा रही है, फिल्म इंडस्ट्री में भी आगे बढ़ रही हैं तो पत्रकारिता में भी कैरियर बना रही हैं और इन सभी जगहों पर कोई भी मुस्लिम महिला हिजाब पहनकर कार्य नहीं कर सकती। इसलिए उन्हें हिजाब पहनने को विवश ना किया जाए।
हां जो महिलाएं हिजाब पहनना चाहती हैं, पहन सकती हैं परंतु इस प्रकार के सार्वजनिक कार्यों में हिजाब पहनने की अनुमति उन्हें नहीं मिलेगी। वो अपने घर में पहन सकती हैं, अपने गांव में पहन सकती हैं, बाजारों में पहन सकती हैं परंतु इस पद पर रहते हुए, विद्यालय में, अस्पतालों में, किसी भी सार्वजनिक मंच पर हिजाब नहीं पहन सकतीं।
मुस्लिम समाज में ही बहुत सी महिलाएं हिजाब पहनकर कार्य करना नहीं चाहती परंतु उन्हें समाज का भय दिखाकर, मजहबी पुस्तकों का भय दिखाकर हिजाब पहनने पर विवश किया जाता है। इस प्रकार से उनकी तरक्की करने की संभावनाओं को नष्ट किया जा रहा है क्योंकि किसी भी बड़े सरकारी पद पर, बिजनेस के क्षेत्र में, सार्वजनिक क्षेत्र में, खेल जगत में, मेडिकल क्षेत्र में या पत्रकारिता में हिजाब पहनकर कार्य नहीं किया जा सकता और यदि उन्हें हिजाब पहनने को विवश किया जाएगा तो निश्चय ही उनकी प्रगति की मार्गों को अवरूद्ध किया जा रहा है।
समय के साथ साथ हर समाज में, हर संप्रदाय में आवश्यकतानुसार सुधार होते रहे हैं। सनातन धर्म में भी समय के साथ साथ कुछ बुराइयां आ गई थी और कुछ अभी भी चल रही हैं, किंतु धीरे-धीरे इन सभी में सुधार होता गया है और भविष्य में भी होता जाएगा परंतु इस्लाम आज भी अपनी 1400 साल पुरानी संस्कृति पर चलने की कोशिश कर रहा है इसलिए इन्हें समझना चाहिए कि यदि हम समय के साथ खुद को नहीं बदलते हैं तो या तो समय हमें बदल देता है या तो समय हमारा विनाश कर देता है।
दुनिया भर के कुछ देश या व्यक्ति विशेष जो खुद को खलीफा तक मानते हैं, जो खुद को इस्लाम का सबसे बड़ा पैरोकार मानते हैं वे लोग भी अब अपने कानूनों में परिवर्तन करने लगे हैं। इस्लाम का सबसे बड़ा पैरोकार सऊदी अरब वह भी अब शरीयत के कानूनों से खुद को दूर करने लगा है, महिलाओं को वहां भी छूट दी जाने लगी है, कानूनों में बदलाव किया जाने लगा है। तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क ने हिजाब को पिछड़ी सोच वाला बताते हुए इसे ख़ारिज कर दिया था, ईरान है वहां भी 1979 तक किसी किसी प्रकार की हिजाब जैसी पाबंदियां नहीं थीं, कोई हिजाब नहीं पहनता था वहां, लेकिन वहां भी इस्लामिक कट्टरता फैलती गई और 1983 आते-आते वहां भी हिजाब अनिवार्य कर दिया गया। 2017 में ईरान में हिजाब को लेकर काफी विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसके बाद वहां हिजाब के लिए एक सर्वे कराया गया था जिसमें 50% महिलाओं ने हिजाब के खिलाफ मतदान किया था। अफगानिस्तान में तो हिजाब को लेकर विरोध हो रहा है, तालिबान के आने से पूर्व वहां हिजाब कोई नहीं पहनता था और अब तालिबान वहां हिजाब लागू करने की कोशिश कर रहा है तो उसका विरोध हो रहा है। पाकिस्तान में भी अपने कानूनों में बदलाव लाया गया है, पाकिस्तान भी शरीयत पर नहीं चल रहा।
दुनिया भर के इतने मुस्लिम देश खुद शरीयत पर नहीं चलते, जहां से इस्लाम की शुरुआत हुई वहां भी शरीयत के आधार पर कार्य नहीं होता तो उस शरीयत को यह लोग भारत में लागू करने की कोशिश किस प्रकार से कर सकते हैं जबकि भारत कभी भी इस्लामिक मुल्क नहीं रहा है। इस्लामिक अक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण करके भले ही 800 वर्षों तक राज किया हो परंतु संपूर्ण भारत पर उन्होंने न कभी राज किया था और ना ही संपूर्ण भारत में इस्लाम फैला था। भारत में इस्लाम विदेशों से आया है और नियमानुसार कोई भी अतिथि अपने मेजबान के घर जाकर अपनी इच्छानुसार नियम कायदे नहीं चला सकता, उसे अपने मेजबान के घर मेजबान के नियमों के अनुसार चलना होता है, उसकी संस्कृति को मानना होता है। उसकी संस्कृति को परिवर्तित करने का प्रयास नहीं कर सकते, उसके घर पर कब्जा नहीं कर सकते, जैसी गलती पूर्व में एक बार कर चुके हैं।
यहां पर भारत के संविधान में इतनी अधिक छूट दे रखी है इन लोगों को कि यह लोग यहां पर खुद को अपनी शरीयत को अपनी मजहबी पुस्तकों को संविधान से ऊपर मानने लगे हैं। शायद उन्हें पता नहीं है कि सऊदी अरब इन लोगों को हिंदू कहकर संबोधित करता है, इन्हे कोई भी मुसलमान नहीं मानता, सब इन्हें कन्वर्टेड ही कहते हैं। जो खुद ओरिजिनल मुसलमान हैं, वह समय के साथ खुद को परिवर्तित कर रहे हैं और जो लोग कन्वर्टेड मुसलमान बने हैं, उनमें इतना अधिक दिखावा, इतना अधिक कट्टरवाद?
इस प्रकार के कार्यों से इस प्रकार के मजहबी इरादों से यह लोग भारत में गृह युद्ध भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। महिलाओं को आगे रखकर कुछ कट्टरपंथी संगठन कुछ आतंकवादी इस्लामिक संगठन भारत में सांप्रदायिक आग फैलाने की, गृह युद्ध भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। इन महिलाओं को इस्लाम के नाम पर इतना कट्टर बना दिया जाता है कि इन्हें स्वयं इतना विवेक नहीं रहता कि यह लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं या अपने आप को गुलाम बनाने के लिए लड़ रही हैं।
जावेद अख्तर का नाम तो सभी जानते हैं उनकी बेटियां हिजाब नहीं पहनतीं, आरफा खानम शेरवानी और राणा अय्यूब, रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार, सभी जानते होंगे ये लोग हिजाब नहीं पहनतीं। दिल्ली की सुबुही खान हिजाब तो क्या बाल भी नहीं बांधती हैं। बॉलीवुड की न जाने कितनी एक्ट्रेस हैं, हिजाब नहीं पहनतीं। शरीयत के अनुसार तो महिलाओं को घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहिए तो बॉलीवुड में जाकर इस प्रकार से वह अंग प्रदर्शन किस प्रकार से कर सकती हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, वह भी मानते हैं कुरान में कहीं नहीं लिखा है कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब बांधना अनिवार्य है। पाकिस्तान के पत्रकार तारेक फतेह भी इन लोगों के हिजाब के लिए किए जा रहे विरोध को गलत बता चुके हैं, जब इस्लाम के इतने पैरोकार खुद इन पाबंदियों को शरीयत को नहीं मानते हैं तो इन कुछ कट्टरपंथी संगठनों के कह देने से भारत में शरीयत लागू हो जाएगी? असंभव है।
समय के साथ लगातार हो रहे विभिन्न मुद्दों को लेकर इन प्रदर्शनों को देखते हुए भारत सरकार को अब भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए तैयार होना चाहिए। हर व्यक्ति के लिए एक कानून। किसी के लिए कोई भी मजहब के आधार पर पर्सनल लॉ नहीं होंगे। सभी धर्मों के धार्मिक कानून सभी धर्मों के पर्सनल लॉ समाप्त करके समान नागरिक संहिता लागू कर देना चाहिए। शीघ्र ही इसके ड्राफ्ट तैयार करके संसद में लाना चाहिए वरना इसी तरह से समय के साथ-साथ लोग विभिन्न मुद्दों को लेकर बहस करेंगे, आंदोलन करेंगे, धरने करेंगे, हिंसा करेंगे। हां यह संभव है और निश्चित भी है कि समान नागरिक संहिता का भी बड़े स्तर पर विरोध होगा। परंतु ये अनिवार्य है। किसी भी समाज में बदलाव लाना है तो उसके लिए कुछ कट्टरपंथियों का, रूढ़िवादियों के प्रतिरोधों का सामना तो करना होगा तो उसके लिए हमें तैयार होना चाहिए। इन कट्टरपंथियों को दबाना चाहिए ना कि इनकी हौसलों को बढ़ने देना चाहिए।
साथ ही नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को पूरे भारत में लागू करना चाहिए। जनसंख्या नियंत्रण कानून का ड्राफ्ट भी तैयार करना चाहिए क्योंकि किसी भी देश की तरक्की के लिए उसके पास सभी नागरिकों का रिकॉर्ड होना, उनकी एक नियंत्रित जनसंख्या होना और राज्य में वैध नागरिकों का ही रहना अनिवार्य है अन्यथा जिस प्रकार से किसी समय पर्शिया के नाम से जाने वाला देश आज ईरान न बन गया होता, किसी समय गांधार नमक राज्य आज अफगानिस्तान ना बन गया होता, किसी समय बंगाल के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र आज बांग्लादेश ना बन गया होता,तक्षशिला और सिंध प्रांत आज पाकिस्तान ना बन गया होता। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जो अपनी सांस्कृतिक पहचान खो चुके हैं। इन लोगों की जनसंख्या को नियंत्रित करना बहुत अनिवार्य है वरना जहां यह अल्पसंख्यक होते हैं वहां शांति की बात करते हैं अधिकारों की बात करते हैं पर धीरे धीरे अपनी जनसंख्या बढ़ात रहते हैं और जैसे ही बहुसंख्यक होते हैं पूरे देश पर कब्जा कर लेते हैं।
हमें इतिहास से सीखना होगा क्योंकि समय के साथ हर व्यक्ति की मानसिकता बदल सकती है परंतु इन लोगों की नहीं, क्योंकि यह लोग सदैव शरीयत पर ही चलने का प्रयास करेंगे, इन लोगों को समाज सुधार नहीं चाहिए। इन लोगों के लिए देश से बढ़कर मजहब है और यह लोग कभी भी जब मजहब और राष्ट्र धर्म के बीच किसी एक को चुनना होगा तो यह मजहब को ही चुनेंगे।
पिछले कुछ वर्षों से अनेक बार देखा जा चुका है जहां राष्ट्र दूसरी तरफ चलता है और यह लोग दूसरी तरफ चलते हैं, इसलिए वह हर राष्ट्र अपना अस्तित्व खो देता है जो अपने इतिहास से सीख नहीं लेता। जो उन लोगों पर भरोसा कर लेता है, जिनके बदलने की संभावना नहीं होती और उनसे यह उम्मीद कर लेता है कि समय के साथ ये बदल जाएंगे।