ग्लोबल वार्मिंग इन हिंदी | ग्लोबल वार्मिंग के कारण तथा परिणाम


ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

ग्लोबल वार्मिंग क्या है?
ग्लोबल वार्मिंग के कारण,
ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम,
ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार देश,


नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में हम ग्लोबल वार्मिंग के बारे में अध्ययन करेंगे। ग्लोबल वार्मिंग क्या है, इसे ग्लोबल वार्मिंग क्यों कहते हैं, किस वजह से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, इसके पीछे कौन जिम्मेदार है, ग्लोबल वार्मिंग क्यों खतरनाक है? इन सभी को विस्तार से समझेंगे।

सबसे पहले यह जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है- पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में वृद्धि और पृथ्वी के वातावरण का ताप बढ़ना। वास्तव में पृथ्वी के वातावरण का ताप बढ़ने से ही पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में वृद्धि हो रही है और ये सब ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण हो रहा है, जिसके लिए पूरी तरह से ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेदार हैं। इस समय ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार 7 गैसों को ग्रीन हाउस गैसें माना जाता है-

Carbon di oxide (CO2), 
Methane (CH4), 
Nitrous oxide (N2O), 
Hydro Fluorocarbons(HFCs),
Per Fluorocarbons(PFCs),
Sulphur hexafluoride (SF6),
NITROGEN TRIFLUORIDE (NF3)


ग्लोबल वार्मिंग के कारण

इन 7 गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड अकेले ही 60% ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी से उत्सर्जित होकर अंतरिक्ष में जाने वाली दीर्घ तरंगदैर्ध्य की किरणों को काफी मात्रा में अवशोषित कर लेता है। कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक भी है, क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड रात के समय पृथ्वी से उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा को अवशोषित करके पृथ्वी के वातावरण को गर्म रखता है, जिससे यहां दिन और रात का तापांतर  अधिक नहीं होता। कार्बन डाइऑक्साइड ना होने पर पृथ्वी पर दिन और रात में होने वाला तापांतर बहुत अधिक हो जाएगा बिल्कुल चंद्रमा और अन्य ग्रहों की तरह। दिन में तापमान ज्यादा होगा तो रात में शून्य से काफी नीचे चला जाएगा जिससे यहां पर पाई जाने वाली जैव विविधता और जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

परंतु सिर्फ एक सीमित मात्रा में ही यह आवश्यक है, सीमा से कम होने पर भी खतरनाक है और सीमा से अधिक होने पर भी खतरनाक है। प्रकृति में हर चीज का संतुलन बना रहता है और जब यह संतुलन बिगड़ता है तो इसका पृथ्वी पर और प्राणी जगत पर दुष्प्रभाव होना निश्चित है। प्रकृति में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा औद्योगिक काल से पहले 0.028% थी, जो औद्योगिक क्रांति के बाद बढ़कर 0.03% हो गई और वर्तमान समय में यह बढ़कर के 0.04% हो चुकी है। यदि वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के अणुओं की Parts per million(PPM) मात्रा काउंट की जाए तो यह पूर्व औद्योगिक काल में 280 PPM थी, औद्योगिक क्रांति के बाद 300 PPM हो गई थी और आधुनिक समय में यह 400 PPM तक पहुंच चुकी है। 

कार्बन डाइऑक्साइड के बाद ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार तत्वों में दूसरे स्थान पर मीथेन है। पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन का घनत्व 1750ई० के बाद से लगभग 150% की वृद्धि हुई है। वैश्विक वायुमंडल में मीथेन गैस की मात्रा को वर्ष 2019 में अब तक के शीर्षतम स्तर पर दर्ज किया गया है। 2019 में हवा में मीथेन का अंश 1,875 PPB (Parts per billion) पर पहुंचा जबकि 2018 में यह 1,866 PPB था। एक Parts per billion का अर्थ है कि हवा के एक अरब (बिलियन) कणों में एक अंश मीथेन का है। 

इसी प्रकार 2020 में नाइट्रस ऑक्साइड की वायुमंडलीय सांद्रता 333 PPB तक पहुंच गई  , जो सालाना लगभग 1 PPB की दर से बढ़ रही है। इसी तरह अन्य सभी गैसों की मात्रा वायुमंडल में लगातार बढ़ती जा रही है जिस वजह से पूर्व औद्योगिक काल में सूर्य से आने वाली लघु तरंगदैर्ध्य की जो किरणें  पृथ्वी से दीर्घ तरंगदैर्ध्य की किरणों के रूप में उत्सर्जित होकर अंतरिक्ष में वापस चली जाती थी, वो अब इन कणों की मात्रा अधिक होने से अधिक मात्रा में पृथ्वी के वायुमंडल में ही इन कणों के द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं, जिससे पृथ्वी के वातावरण का तापमान बढ़ रहा है और वातावरण के तापमान में वृद्धि होने से पृथ्वी की सतह का तापमान भी बढ़ रहा है। 

यह ग्रीन हाउस गैसें ना केवल ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं बल्कि यह धरती का आवरण कहे जाने वाले ओजोन परत का भी क्षरण करती हैं। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ओजोन परत का क्षरण नहीं करती हैं परंतु ग्लोबल वार्मिंग के लिए अवश्य जिम्मेदार हैं। ओजोन परत का क्षरण होने से सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें अधिक मात्रा में पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने लगी हैं, जिससे कैंसर जैसी घातक बीमारियां तेजी से फैल रही हैं।


ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम

पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में पूर्व औद्योगिक काल के स्तर में वर्तमान समय तक  1⁰C की वृद्धि हो चुकी है, और यदि वर्तमान में चल रही गतिविधियां इसी प्रकार चलती रहीं, उन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो 2050 तक उसमें 1.5⁰C की वृद्धि हो जाएगी, जिससे 21वीं शताब्दी के अंत तक समुद्र तटों पर बसे हुए दुनिया के कई बड़े शहर, कई छोटे छोटे देश समुद्र में डूब जाएंगे। इसकेे अलावा पृथ्वी के Temperature belt में भी बदलाव आएगा। भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्र जो अभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आते हैं, वह रेगिस्तानी क्षेत्रों में बदलने लगेंगे। उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बदलने लगेंगे। शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बदल जाएंगे। ध्रुवीय प्रदेश और टुंड्रा आदि क्षेत्र जो सदा बर्फ से ढके रहते हैं, वहां की बर्फ तेजी से पिघलने लगेगी और या तो वह लगभग समाप्त हो जाएगी या बहुत सीमित क्षेत्रों में रह जाएगी।
 संपूर्ण पृथ्वी के अनेक देशों में मौसमी गतिविधियों में बदलाव आ जाएगा। ऋतुओं के आगमन का समय बदल जाएगा। समुद्रों में उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और उनकी तीव्रता भी बढ़ेगी, जिससे समुद्र तटों पर बसे हुए क्षेत्रों में भयंकर चक्रवात आएंगे और काफी अधिक संख्या में आएंगे। 

तापमान में वृद्धि होने से अनेक प्रकार की बीमारियां फैलने लगेंगी। ग्लेशियर पिघलने से नदियों में बाढ़ आएगी। जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ेंगी। बादल फटने की घटनाएं बढ़ेंगी। रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी बाढ़ आएगी। प्रदूषण बढ़ने से अनेक शहरों में सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा।


इस प्रकार हम देख सकते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी की सतह में होने वाली ताप वृद्धि से जीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाएगा। 

ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार देश

वैसे तो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सभी देश जिम्मेदार हैं, परंतु वर्तमान समय में सामने आ रहे ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों के पीछे मूल रूप से औद्योगिक क्रांति जिम्मेदार है, जो यूरोप में शुरू हुई थी और फिर जिसका प्रसार अनेक देशों में हो गया। भौतिक सुविधाओं की होड़ में, भौतिक सुखों की लालसा में अंधे होकर अमीर देश अपनी सुख-सुविधा की वस्तुओं के उत्पादन में तेजी से निवेश कर रहे हैं। 
वर्तमान में यदि प्रति व्यक्ति सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों की लिस्ट बनाई जाए तो इस सूची में कतर प्रथम स्थान पर आता है। कतर प्रति व्यक्ति 37% से अधिक कार्बन उत्सर्जन करता है। कतर में एक व्यक्ति जितना कार्बन उत्सर्जन करता है उतना भारत में 22 परिवार मिलकर भी नहीं करते। इसके बाद कुवैत, यूएई, सऊदी अरब, कजाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा आदि देशों का नाम आता है।
इस प्रकार यह उन देशों की सूची है जो प्रति व्यक्ति सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं, परंतु जनसंख्या कम होने की वजह से लोग इन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराते।
अब बात उन देशों की करते हैं जो एक देश के रूप में सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं। इस सूची में चीन 30% के साथ प्रथम स्थान पर है, उसके बाद USA 14%, भारत 7%, EU(Europian Union) भी 7% हैं। फिर रूस, जापान, जर्मनी, ईरान, सउदी अरब, साउथ कोरिया, कनाडा का नाम आता है।

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