जलवायु परिवर्तन के उपाय
नमस्कार दोस्तों आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज हम इस आलेख में जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय का अध्ययन करेंगे।
More articles…. जलवायु परिवर्तन क्या है?
वर्तमान समय में पूरे विश्व की जलवायु में, मौसमी गतिविधियों में अनेक प्रकार के बदलाव सामने आते दिखाई दे रहे हैं और भविष्य में होंगे भी, क्योंकि प्रकृति में मौजूद वायुमंडलीय तत्वों की मात्रा सीमा से अधिक हो रही है। पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करने वाले, जीवन का अस्तित्व बनाए रखने वाले तत्वों की मात्रा संतुलन की सीमा से अधिक हो रही है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर इस समय अनेक सम्मेलन हो रहे हैं। सबसे पहले पर्यावरण को लेकर 5 जून 1972 ई० को स्टॉकहोम (स्वीडन) में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की घोषणा की गई थी। उसी के उपलक्ष्य में हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, परंतु इस सम्मेलन में मुख्य मुद्दा पर्यावरण की सुरक्षा ही था, जलवायु परिवर्तन जैसी कोई बात इसमें नहीं की गई थी और न ही उस समय इस मुद्दे पर कोई चर्चा होती थी।
IPCC का गठन
जलवायु परिवर्तन पर प्रथम बार बैठक नवंबर 1988 को जिनेवा में हुई थी, जिसे विश्व मौसम संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा आयोजित किया गया था। इसमें एक अंतर सरकारी पैनल (IPCC) का गठन किया गया था।
इसके बाद समय-समय पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अनेक सम्मेलन होते रहे, अनेक समझौते होते रहे, पर कभी भी किसी समझौते पर अमल नहीं किया। वर्ष 1997 में जापान में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के नेतृत्व में एक समझौता किया गया था जिसे क्योटो प्रोटोकॉल के नाम से जानते हैं। प्रारंभ में इसमें कनाडा शामिल नहीं हुआ था, इस वजह से यह प्रोटोकॉल कनाडा के शामिल होने के बाद 2005 से लागू हो पाया। इस प्रोटोकॉल में 1997 में यह तय किया गया था कि 2008 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 1990 के स्तर से 5.2% कम किया जाएगा, परंतु लक्ष्य को 2012 तक बढ़ाने के बावजूद पूरा नहीं किया जा सका। फिर 2012 में 2020 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन दर 18% तक कम करने का वादा किया गया, लेकिन वह भी पूरा नहीं हो सका।
2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन में 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से 1.5⁰C तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है, परंतु वर्तमान गतिविधियों को देखते हुए यह लक्ष्य भी पूर्ण होता नहीं दिख रहा।
जलवायु परिवर्तन के उपाय
हम जानते हैं कि वर्तमान समय में दिख रहे जलवायु परिवर्तन के पीछे ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है और ग्लोबल वार्मिंग ग्रीन हाउस गैसों की वजह से हो रही है और इन ग्रीन हाउस गैसों के लिए मनुष्य और मनुष्य की भौतिकवादिता जिम्मेदार है। इसलिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हर देश को ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर निवास करने वाले हर व्यक्ति को कदम उठाने होंगे।
हमें अपनी भौतिकवादिता कम करनी होगी, हमें भोगी नहीं उपयोगवादी बनना होगा।
प्राकृतिक के वस्तुओं का उपयोग करना सीखना होगा, उनका भोग करना नहीं।
हमें अपने अंदर संतुष्टि का भाव लाना होगा, ऐशों-आराम की जिंदगी, सुख-सविधाओं की जिंदगी में इतने अंधे नही होना चाहिए कि अपने लाभ और स्वार्थ के आगे प्रकृति की चिंता न हो।
हमें अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाना चाहिए, उनका संरक्षण करना चाहिए। अक्सर ये सुनने को आता है कि किसी विशेष जगह पर इतने लाख या इतने करोड़ पौधे लगाए गए। किसी विशेष अवसर पर इतने करोड़ पौधे लगाए गए परंतु सिर्फ कागजों में पौधे लगाए जाते हैं और अगर कुछ जगहों पर वास्तव में लगाए भी जाते हैं तो उनका संरक्षण नहीं किया जाता, जिससे वे पौधे विकास नही कर पाते और शीघ्र ही मुरझा जाते हैं।
सरकारों को और उद्यमियों को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर अधिक निवेश करना चाहिए। कोयला आधारित कारखानों के स्थान पर नवीकरणीय और प्रदूषण न फैलान वाले ईंधन स्रोतों से चलने वाले उद्योगों की स्थापना करनी चाहिए।
देश के नागरिकों को उन सभी वस्तुओं की खपत में कमी करनी चाहिए जिसके उत्पादन और उपभोग से अधिक प्रदूषण फैलता हो, अधिक मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें उत्पन्न होती हों।
वाहन उद्योगों को अधिक संख्या में इलेक्ट्रिक और गैर प्रदूषणकारी ईंधनों से चलने वाले वाहन के निर्माण पर अधिक निवेश करना चाहिए।
इस तरह से अनेक ऐसे उपाय हैं जिन्हें सरकारी स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर अपनाया जा सकता है और जो सर्वमान्य भी हैं।
जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए जियो इंजीनियरिंग के वैज्ञानिकों (भू वैज्ञानिकों) ने कुछ उपाय बतलाएं हैं परंतु उनके उपाय काफी खतरनाक हैं, और शोध का विषय हैं। उनके अनुसार-
कुछ भू वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है की दुनिया के कुछ सुप्त पड़े हुए ज्वालामुखियों में परमाणु बम डाल दिया जाए जिससे बहुत अधिक मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलेगी जो बड़े स्तर पर बादलों का निर्माण करेगी। इससे कुछ वर्षों तक उसके आसपास के क्षेत्रों में अथवा देशों में सूर्य की किरणें धरती तक नहीं पहुंच सकेंगी और धरती से परिवर्तित होने वाली दीर्घ तरंगदैर्घ्य की किरणें धीरे-धीरे पृथ्वी के वातावरण से पार चली जाएंगी जिससे धरती का तापमान कम हो जाएगा। इसकी प्रेरणा उन्होंने इटली के स्ट्रांबोली ज्वालामुखी में हुए विस्फोट से ली जिसके बाद कई वर्षों तक इटली और आस-पास के देशों में धूप नहीं निकली थी।
कुछ भू वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि धरती पर अनेक जगह (जैसे तिब्बत का पठार, ऊंचे ऊंचे पर्वत और बड़े बड़े अन्य पठार) बड़ी-बड़ी त्रिज्याओं (5 Km, 10 Km, 20 Km) के कुछ दर्पण लगा दिए जाएं जिससे पृथ्वी से परावर्तित होने वाले प्रकाश की मात्रा बढ़ जाए और सूर्य का प्रकाश अधिक मात्रा में पृथ्वी के वातावरण से बाहर जा सके क्योंकि जब प्रकाश पृथ्वी की सतह पर पड़ेगा ही नहीं तो दीर्घ तरंगदैर्ध्य की किरणें उत्सर्जित नहीं होंगी और ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा अवशोषित नहीं होंगी परंतु इतनी बड़ी बड़ी त्रिज्या के दर्पण लगाने में खर्च बहुत हैं।
कुछ वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि कुछ ऐसे छद्म वृक्ष लगाएं जाएं जो कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण कर सकें और जब कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर सामान्य (0.028%) हो जाए तो इन्हे समुद्र की गहराइयों में डाल दें। फिलहाल इस पर अभी शोध हो रहा है कि इसे प्रयोग में लाना व्यवहारिक है या नही।
इसके अलावा कुछ भू वैज्ञानिकों ने ये भी सलाह दी है कि समुद्र में आयरन के सूक्ष्म कणों को डाल कर शैवालों की मात्रा बढ़ा दी जाए जिससे प्रकाश संश्लेषण बढ़ जाएगा और कार्बन डाइऑक्साइड की खपत बढ़ेगी क्योंकि 90% कार्बन डाइऑक्साइड की खपत शैवालों के प्रकाश संश्लेषण में ही होती हैं। शैवालों की मात्रा अधिक होने पर ये स्वयं ही समुद्र में डूब जाएंगे, परंतु इन शैवालों की अधिक मात्रा और आयरन के कणों से समुद्री जीवों पर पड़ने वाला प्रभाव शोध का विषय है।
फिलहाल भू वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए उपायों पर शोध चल रहा है और उम्मीद है जल्द ही कुछ परिणाम सामने आएंगे। इसलिए सभी देशों की यह जिम्मेदारी है कि जलवायु परिवर्तन जैसे संभावित खतरे से निपटने के लिए अपनी अपनी तैयारियां शुरू कर दें और इसके साथ ही विनाश की संभावनाओं को कम से कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार तत्वों के उत्सर्जन अर्थात कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने की ओर कदम बढ़ाएं और इसके लिए नीतियां बनाएं।
Super👍