क्या अकबरुद्दीन ओवैसी का 15 min के लिए पुलिस हटा लो वाला बयान सही था? हैदराबाद की एक अदालत के अकबरूद्दीन ओवैसी को हेट स्पीच मामले में बरी करने के मायने

अकबरुद्दीन ओवैसी: हैदराबाद की MP-MLA कोर्ट का विवादित फैसला

हैदराबाद की एक MP-MLA अदालत के अनुसार, असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी का 2012 में एक रैली में दिया गया भाषण एक भड़काऊ भाषण  या हेट स्पीच  नही था और अदालत में यह कहते हुए अकबरुद्दीन ओवैसी को इस मामले से बरी कर दिया कि पुलिस के द्वारा अदालत के समक्ष जो भी सबूत वीडियो के तौर पर प्रस्तुत किए गए थे वह उस रैली में दिए गए भाषण के छोटे-छोटे क्लिप मात्र हैं, जिनके आधार पर इस बात का निर्धारण नहीं किया जा सकता कि यह भाषा जिसका प्रयोग अकबरुद्दीन ओवैसी ने रैली में किया था, यह भड़काऊ भाषण है अथवा नहीं। 
 

हालांकि अदालत ने अकबरुद्दीन ओवैसी को भविष्य में ऐसे भाषण ना देने की नसीहत भी दी।

जानिए क्या था पूरा मामला 

अकबरुद्दीन ओवैसी के खिलाफ आठ दिसंबर 2012 में निजामाबाद जिले और 22 दिसंबर 2012 में निर्मल शहर में ‘हेट स्पीच’ के कई मामलों में एफआईआर दर्ज की गई थी, वे गिरफ्तार भी किए गए थे, हालांकि बाद में उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया। इसके बाद अपराध जांच विभाग(CID) ने 2016 में निजामाबाद वाले मामले में जांच करके चार्जशीट दाखिल की थी। वहीं, इसी साल निर्मल शहर मामले में जिले की पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। निजामाबाद मामले में 41 गवाह जबकि निर्मल के हेट स्पीच मामले में कुल 33 गवाह पेश किए गए थे।

क्या कहा था अकबरुद्दीन ओवैसी ने 

2012 में निजामाबाद और निर्मल शहर में AIMIM पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने कुछ रैलियों को संबोधित करते हुए कहा था

 हिंदुस्तान! हम पच्चीस करोड़ हैं ना, तुम 100 करोड़ हो ना, ठीक है! 15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो हम दिखा देंगे कौन कितना ताकतवर है। 

साथ ही उन्होंने इन्हीं भाषणों में 15 मिनट में 100 करोड़ हिंदुओं के कत्लेआम करने की भी बात कही थी।
 
इन जन सभाओं में उनके इस प्रकार के भड़काऊ भाषणों के पश्चात कई जगह पर उनके विरुद्ध FIR दर्ज की गई थी और उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी, हालांकि बाद में जमानत पर वह जेल से छूट गए थे। 
 

अदालत के फैसले ने शुरू किया नया विवाद

जिस प्रकार से हैदराबाद की एमपी एमएलए कोर्ट ने अकबरुद्दीन ओवैसी के देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने जैसा भड़काऊ भाषण देने के बाद भी इन्हे सबूतों के नाम पर Hate Speech नहीं माना है, जबकि वायरल हो रहे अनेक वीडियो में इस बात को लेकर कोई आशंका ही नहीं है कि उनका यह भाषण हेट स्पीच था या नहीं। 
 
Hate speech पर अदालत का फैसला

 

फिर भी अदालत ने जिस प्रकार से इस विवादित बयान पर विवादित फैसला दिया है, उसके इस फैसले के पश्चात देश में दो तरह की Controversy खड़ी होती है। पहली बात यदि अदालतों की हेट स्पीच तय करने या न करने की परिभाषा यही है तो यति नरसिंहानंद की हिंदुओं को आत्मरक्षा के लिए शस्त्र रखने के लिए आह्वान देना किस प्रकार से भड़काऊ भाषण या हेट स्पीच हो सकता है? कालीचरण महाराज का महात्मा गांधी से असहमति जताना किस प्रकार से भड़काऊ भाषण या महात्मा गांधी का अपमान हो सकता है?
 

क्या जूनियर ओवैसी की नज़रों में भारत सिर्फ हिंदुओं का देश है?

दूसरी बात यह देखा जाए कि अकबरुद्दीन ओवैसी ने अपने संबोधन में ललकार हिंदुस्तान को दी थी अर्थात् अकबरुद्दीन ओवैसी के शब्दों में यह चुनौती हिंदुस्तान अर्थात भारत के लिए थी। मतलब अकबरुद्दीन ओवैसी जिस 25 करोड़ जन समूह की बात कर रहे थे, वह 25 करोड़ जनसमूह भारतवर्ष में नहीं आता या वह जन समूह अपने आप को भारत का नागरिक नहीं मानता।
 
 या फिर उनके संबोधन के एक और शब्द 100 करोड़ को ध्यान में रखा जाए तो उनकी नजर में हिंदुस्तान का तात्पर्य सिर्फ हिंदुओं से है अर्थात वे भारत को सिर्फ हिंदुओं का देश ही मानते हैं और यदि ऐसा है तो उन्हें अपने आप को हिंदू कहने में समस्या क्या है? क्या वे भारत में नहीं रहते? 
 
सकारात्मक नजर में देखा जाए तो अकबरुद्दीन ओवैसी की इस भाषा और इस भाषण में प्रयोग किए गए शब्दों के भाव इस ओर इशारा करते हैं कि वे भी मानते हैं कि भारत सिर्फ हिंदुओं का देश है परंतु जब उन्होंने और उनके पूर्वजों ने तलवार के दम पर अपने धर्म को परिवर्तित कर लिया था तो वह किस प्रकार से यह कह सकते हैं कि भारत अब वर्तमान समय में भी सिर्फ हिंदुओं का देश है? भले ही आदि काल में इस भारत भूमि पर रहने वाले सभी व्यक्ति हिंदू ही थे, और आज भले ही उन्हें तलवार के दम पर दूसरे धर्मों में परिवर्तित कर दिया गया है किंतु उनकी मूल नस्ल, उनका रहन सहन, व्यवहार तो आज भी हिंदू जैसा ही है। 
 
यही बात यदि कोई और कहे, बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कहे तो उन्हें इस बात का बुरा लगता है कि मुसलमान होते हुए भी कुछ लोग उन्हे हिंदू कह रहे हैं, कुछ लोग उनकी सांस्कृतिक पहचान को मिटाना चाह रहे हैं। 
 

नफरत हिंदुओं से, चुनौती हिंदुस्तान को?

फिर अपने ही भाषण में स्वयं को भारत का नागरिक न मानकर भारत अर्थात हिंदुस्तान को सिर्फ हिंदुओं का देश बता कर, वह भी 125 करोड़ हिंदुओं का न कह कर 100 करोड़ हिंदुओं का देश बता कर खुद ही अपनी सांस्कृतिक पहचान मिटा रहे हैं और ना केवल सांस्कृतिक पहचान मिटा रहे हैं बल्कि अपनी ही देश भक्ति, राष्ट्र भक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। अर्थात जाने अनजाने में उनके हृदय की बात उनके मुख पर आ ही गई।
 
वर्तमान समय में जहां भारतवर्ष में विविध प्रकार के धर्मों के लोग निवास करते हैं, फिर भी हिंदुस्तान शब्द का प्रयोग सिर्फ 100 करोड़ सनातन हिंदुओं के लिए करके वह खुद ही अपनी मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। उनके संबोधन से यह स्पष्ट होता है कि उनकी नजर में भारत देश सिर्फ 100 करोड़ हिंदुओं का देश है। उनके अनुसार यह देश भारत में रहने वाले उन 25 करोड़ मुसलमानों का नहीं है, जो किसी काल में हिंदू ही थे। 
 
हालांकि आज यह संख्या 35 से 40 करोड़ हो चुकी है, फिर भी यदि 2012 में दिए गए उनके भाषण के मद्देनजर टिप्पणी की जाए तो तत्कालीन परिस्थिति में उन्होंने जिस 25 करोड़ जनसमूह को 100 करोड़ जनसमूह से लड़ाने और ताकत दिखाने की धमकी दी थी, क्या वह 25 करोड़ जनसमूह स्वयं को भारतवर्ष से जोड़ कर नहीं देखता? 
 
या फिर उनके निशाने पर भारत की सांस्कृतिक पहचान है यानी कहीं ना कहीं देखा जाए तो इशारों इशारों में यह स्पष्ट होता है कि वह भी उसी मिशन पर कार्य कर रहे हैं, जिस मिशन की बात हमारे देश के ही कुछ टुकड़े जैसे कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कट्टरपंथी और आतंकवादी समूह करते हैं, जैसी बात अरब एवं खाड़ी देशों के आतंकवादी समूह करते हैं।
शायद वे उस इतिहास को दोहराने की बात कर रहे हैं जिसके कारण किसी काल में पर्शिया के नाम से जाने वाला देश आज ईरान बन गया है।
 
हां यह बात भी बिल्कुल सत्य है कि जिस 25 करोड़ जनसमूह की चर्चा अकबरुद्दीन ओवैसी अक्सर अपने भाषणों में करते रहते हैं, वह 25 करोड़ या आज की परिस्थिति में कहें तो वह सम्पूर्ण 40 करोड़ जनसमूह वास्तव में वैसा नहीं सोचता, जैसा उनका प्रतिनिधित्व करने वाले ओवैसी बंधुओं जैसे लोग सोचते हैं। 
 
उस 40 करोड़ जन समूह में से अधिकतर ऐसे लोग हैं जो स्वयं को भारतवर्ष से, हिंदुस्तान से जोड़कर ही देखते हैं, जो स्वयं को भारत का ही नागरिक मानते हैं और भारत के लिए जीने और मरने को तैयार है, परंतु उन 40 करोड़ लोगों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं, यह बात हमें मानना ही होगा जो भारत की सांस्कृतिक पहचान को मिटा देने की बात करते हैं और उस मिशन पर अंदर ही अंदर कार्य भी करते रहते हैं। 
 
इसलिए हम सभी लोगों को मिलकर चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, इसाई हो, कोई भी हो, उन्हें 100 करोड़, 25 करोड़ या 40 करोड़ में बंट कर आपस में नही लड़ना है बल्कि उन्हें उन लोगों के विरुद्ध लड़ना है, जो मोहम्मद अली जिन्ना की भांति लोगों को 25 या 40 करोड़ और 100 करोड़ में बांटकर उन्हें आपस में लड़ा कर अपनी किसी विशेष महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने का प्रयास कर रहे हैं। 
 
उन्हें यह याद रखना चाहिए कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा, समर्पण एवं आस्था व्यक्त करने के तरीके बदल लेने मात्र से किसी व्यक्ति की संस्कृति नहीं बदल जाती, किसी व्यक्ति का धर्म नहीं बदल जाता। विचारधारा बदल सकती है, ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग बदल सकते हैं, सत्य को प्राप्त करने के मार्ग बदल सकते हैं, लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग बदल सकते हैं किंतु लक्ष्य नहीं बदल सकता। 
 
और हां अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे लोग और उस 40 करोड़ जन समूह में से जो लोग भी इन ओवेसी बंधुओं के एजेंडों पर कार्य करते हैं, उन सभी को एक बात बता देना चाहते हैं कि भारत ना तो ईरान है, ना अफगानिस्तान है, ना पाकिस्तान है, ना संपूर्ण भारत बंगाल है, ना संपूर्ण भारत केरल है, ना संपूर्ण भारत कश्मीर है। यदि वे सोचते हैं कि वे लोग संपूर्ण भारत की डेमोग्राफी इसी प्रकार से बदलकर भारत को एक दिन इस्लामिक देश में, इस्लामिक मुल्क में बदल लेंगे तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल है।
 
भारत सनातन संस्कृति को मानने वाला देश है। सनातन अर्थात जिसका न आदि है, न अंत है, जो अनंत है। इसलिए इसका अंत तो हो ही नहीं सकता। हां भारत से इस्लाम की कट्टरता का अंत जरूर हो सकता है।

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