हिंदुओं की शोभा यात्रा पर देश भर में पत्थरबाजी
- हिंदू नववर्ष हिंसा: करौली(राजस्थान)
- रामनवमी हिंसा: खरगोन (MP), गुजरात व देश के अन्य हिस्से
- हनुमान जयंती हिंसा: जहांगीरपुरी(दिल्ली) व देश के अन्य हिस्से
बीते कुछ दिनों से हमारे देश में अनेक स्थानों पर हिंदुओं की शोभा यात्राओं के ऊपर हमले, पत्थरबाजी, हिंसा व आगजनी की खबरें मिल रही हैं।
हिंदू नववर्ष शोभा यात्रा: करौली, राजस्थान
इस वर्ष अप्रैल माह के आरंभ में ही शोभा यात्रा पर पत्थरबाजी की खबर राजस्थान के करौली से आई थी, जहां हिंदू नव वर्ष के मौके पर हिंदुओं द्वारा शोभा यात्रा निकाली गई थी। जैसे ही शोभायात्रा मुस्लिम बहुल इलाके में पहुंची, उस पर घरों की छतों से पत्थरबाजी की जाने लगी। पेट्रोल बम और तलवारों से लैस भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। जिससे बाद में उस इलाके में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। दोनों पक्षों के लोग आपस में भिड़ गए। बाद में वहां से हिंदुओं के पलायन की खबरें भी आईं।
रामनवमी शोभा यात्रा: खरगोन, MP
इसी तरह 10 April को रामनवमी पर निकाली गई भगवान श्री राम की शोभा यात्रा पर पत्थरबाजी की खबरें देश के अनेक हिस्सों से आईं, जिनमें मध्य-प्रदेश के खरगोन और गुजरात में हुई हिंसा ने अधिक व्यापक रूप ले लिया था। जिसमें बाद में प्रशासन ने उन पत्थरबाजों के घरों पर कार्यवाई भी की। उनके घरों को बुलडोजर से गिरवाया। पत्थरबाजी करने वालों की गिरफ्तारी भी हुई।
हनुमान जयंती शोभा यात्रा: जहांगीरपुरी, दिल्ली
फिर ऐसी ही खबरें पुनः 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के अवसर पर दिल्ली के जहांगीरपुरी में निकाली गई शोभायात्रा के अवसर पर देखने को मिली। जैसे ही शोभा यात्राएं मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरी, मस्जिदों के सामने से गुजरी, उन पर घरों की और मस्जिदों की छतों से पत्थर बरसाए जाने लगे, कांच के टुकड़े फेंके जाने लगे हैं। तलवारों और बंदूकों से लैस भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। जिससे इन इलाकों में भी दंगे भड़क गए, जिनमें अनेक लोग घायल हुए।
दिल्ली पुलिस के सिपाहियों ने इस बीच मोर्चा संभाला और इलाकों में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए हिंसा को रोकने का प्रयास किया तो उन पर भी पत्थरबाजी की गई, जिससे अनेक जवान घायल हो गए।
पत्थरबाजी करने वालों के आरोप
इन दंगों में पत्थरबाजी करने वालों ने आरोप लगाया था कि इन शोभा यात्राओं में तेज आवाज में नारे लगाए गए थे, तेज आवाज में भजन बजाए गए थे। जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो रही थीं। यदि उन लोगों ने सिर्फ तेज आवाज में लगाए जाने वाले नारों के कारण पत्थरबाजी की तो फिर दिल्ली में अगले दिन पत्थरबाजी करने वाले लोगों की गिरफ्तारी के लिए गई पुलिस पर पत्थरबाजी क्यों की? क्या पुलिस ने भी नारेबाजी की थी? क्या पुलिस ने भी शोभायात्रा निकाली थी?
इन पत्थरबाजों ने आरोप यह भी लगाया कि जिस समय शोभायात्रा निकल रही थी, वह समय नमाज का हो रहा था जिससे उनके नमाज में व्यवधान उत्पन्न हो रहा था। इसलिए उन्होंने ऐसा किया। मतलब वे 1 दिन या 1 घंटे के लिए भी अपने धार्मिक आचरणों और क्रियाकलापों के साथ कंप्रोमाइज नहीं कर सकते हैं। यदि ऐसा है तो वह दूसरों से ऐसा करने की उम्मीद किस प्रकार से कर सकते हैं?
आज ये हिंदुओं की शोभा यात्राओं के ऊपर पत्थरबाजी कर रहे हैं तो कल को क्या इसका प्रतिकार नहीं हो सकता? मोहर्रम पर ये लोग भी जुलूस निकालते हैं बड़े पैमाने पर। कई जगहों पर लोगों के खेतों की फसल बर्बाद कर देते हैं, लोगों के बिजली के तार काट देते हैं, पेड़ काट देते हैं, दीवारें गिरा देते हैं और ना जाने क्या-क्या नुकसान करते हैं तो क्या वहां से विरोध के स्वर नहीं उठेंगे?
इस तरह से तो भारत में एक असहिष्णु संस्कृति जन्म लेने लगेगी। एक दूसरे के त्योहारों पर हमला करने की प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगेगी। क्या यही है भारत की पंथनिरपेक्षता? यही है आपसी सौहार्द और सहिष्णुता?
और यदि इन पत्थरबाजों के आरोपों पर गौर किया जाए तो उनका कहना है कि इन शोभा यात्राओं में तेज आवाज में नारे लगाए गए, गीत बजाए गए, जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई अर्थात इन लोगों के अनुसार भारत में उनके अलावा अन्य धर्मों का कोई भी व्यक्ति स्वतंत्रता पूर्वक तब ही अपने त्यौहार मना सकता है, जब उसके धार्मिक आचरण से इन लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत ना हो।
इस तरह से देखा जाए तो इन लोगों को लाउडस्पीकर पर अजान भी नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।
क्या यही है भारत का सेक्युलरवाद
अक्सर सेक्युलरवाद, पंथनिरपेक्षता, संविधान के अनुच्छेद 25 की बातें करने वाले लोग क्या यही समझते हैं कि ये सारे प्रावधान सिर्फ उनके लिए हैं?
अर्थात् उनके संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार, उन्हें अपने सभी प्रकार के धार्मिक आचरण करने की स्वतंत्रता है, धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है परंतु गैर मुस्लिमों को नहीं है।
हमारे देश में अक्सर सेकुलर शब्द का प्रयोग इस अर्थ में होता है कि हिंदू अपने धार्मिक आचरणों, त्यौहारों, अभिव्यक्तियों के साथ कंप्रोमाइज करें और मुस्लिमों के त्योहारों एवं धार्मिक आचरणों को उनके साथ मिलकर मनाए तो यह भारत का सेक्युलरवाद है। जबकि यदि ऐसी ही अपेक्षा कोई उनसे करले कि वह हमारे त्यौहारों को हमारे साथ मिलकर मनाएं, हमारे त्यौहारों पर अपने किसी धार्मिक आचरण के साथ कंप्रोमाइज कर लें तो इससे भारत का सेक्युलरवाद खतरे में आ जाता है।
क्या संविधान में सेक्यूलर शब्द सिर्फ हिंदुओं के लिए है?
संविधान के अनुसार सेकुलर का अर्थ
भारत एक पंथनिरपेक्ष अर्थात सेकुलर राष्ट्र है। इसका अर्थ यह है कि भारत सरकार अपने स्तर से किसी व्यक्ति के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि वह किसी विशेष धर्म, किसी विशेष जाति, भाषा अथवा विचार को मानने वाला है।
परंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि भारत का जनसामान्य समूह अपने धार्मिक आचरण को इसलिए व्यक्त नहीं कर सकता, क्योंकि इससे दूसरों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।
क्या मुस्लिम बहुल इलाकों से हिंदुओं की शोभा यात्राएं नही निकल सकतीं?
मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं की शोभा यात्राओं के ऊपर हुई इन पत्थरबाजी के बचाव में अनेक लिबरल्स, वामपंथी और मुस्लिम यह बयान लगातार दे रहे हैं कि हिंदुओं को अपनी शोभा यात्राएं मुस्लिम बहुल इलाकों से नहीं निकालनी चाहिए, इससे मुस्लिमों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।
यदि ऐसा है तो फिर हिंदू बहुल क्षेत्रों में मुस्लिमों को खुले आम सड़क पर नमाज पढ़ने और अजान देने की अनुमति भी नहीं होनी चाहिए। क्या इससे हिंदुओं और अन्य समुदाय के लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती? सिर्फ यही क्यों? मोहर्रम के जुलूस में न जाने कितने गरीब किसानों के खेत बर्बाद कर दिए जाते हैं, कितने लोगों के तार काट दिए जाते हैं, पेड़ काट दिए जाते हैं, दीवार गिरा दी जाती हैं, परंतु हिंदू समाज यह सोच कर के अधिक विरोध नहीं करता कि जुलूस ईश्वर के नाम पर निकाला जाता है। वह खुद ही कंप्रोमाइज कर लेता है।
और फिर भारत कोई पाकिस्तान, बांग्लादेश या अन्य इस्लामिक देशों की तरह एकल सांस्कृतिक राष्ट्र नहीं है। यह बहु सांस्कृतिक राष्ट्र है। यहां अनेक संस्कृतियों, अनेको धर्मों के लोग निवास करते हैं और सदियों से मिलजुल कर रहते आए हैं, एक दूसरे के त्योहारों में भाग लेते आए हैं, एक दूसरे के त्योहारों में सहयोग देते आए हैं।
- धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप कितना प्रासंगिक है?
वैसे भी शोभा यात्राएं कोई प्रतिदिन नहीं निकलती, वर्ष में एक-दो बार ही निकलती है। इसलिए इससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हों, ऐसा संभव ही नहीं। और यदि ऐसा कोई बहाना दिया जाए कि इससे लोगों को सामाजिक स्तर पर परेशानी होती है, मानसिक अवसाद जैसी समस्याएं होती हैं तो ये भी 1 दिन या 1 घंटे की यात्रा से संभव ही नहीं है। बल्कि यदि इस नजर से बात की जाए तो प्रतिदिन और दिन में 5 बार अजान देने से इसकी संभावनाएं ज्यादा हैं।
- अनुच्छेद 25