IPCC report 2021 | IPCC report क्या है?


IPCC क्या है?
IPCC report 2021

नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में हम IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) यानि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के बारे में पढ़ेंगे। IPCC का गठन कब हुआ, किन संगठनों के द्वारा हुआ, इसका कार्य क्या है और इसकी सबसे लेटेस्ट रिपोर्ट में क्या बताया गया है? आइए जानते हैं-


IPCC report 2021
हाल ही में 9 Aug 2021 को IPCC ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी 6वीं रिपोर्ट Climate Change 2021: The physical science नामक शीर्षक से पेश की थी, जिसके आधार पर ग्लास्गो (स्कॉटलैंड) में COP (Conference of parties) का 26वां सम्मेलन आयोजित किया गया था और इस पैनल के द्वारा जताई गई आशंकाओं पर चर्चा की गई थी। जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम से कम करने के लिए सभी देशों ने कार्बन उत्सर्जन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों  के उत्सर्जन को नेट जीरो करने की अपनी प्रतिबद्धताओं और समय सीमा का उल्लेख किया। साथ ही कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के लिए चल रही अपनी वर्तमान एवं भविष्य की योजनाओं के बारे में भी बताया।

IPCC की इस रिपोर्ट में विश्व के 1400 से भी अधिक वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर कुछ आशंकाएं जताई थीं, जो अग्रलिखित हैं-

  • वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि पेरिस जलवायु समझौते में तय की गई वैश्विक तापमान वृद्धि की 1.5⁰C की सीमा तो अगले 20 वर्षों में ही पर हो जायेगी।

  • यदि वर्तमान की तरह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी प्रकार जारी रहा तो 21वीं सदी के मध्य में ही वैश्विक तापमान वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को भी पार कर जाएगी, जिससे समुद्रों के जल का आयतन बढ़ेगा। 

  • वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5⁰C पर रोकने के लिए 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की दर में 2010 के स्तर पर 45% की कमी लानी होगी और 2050 तक कार्बन उत्सर्जन के लिए नेट जीरो अर्थात 100% कटौती का लक्ष्य पूर्ण करना होगा।

  • समुद्रों के जलस्तर में हो रही वृद्धि दर बीते 2500 से 3000 वर्षों में सर्वाधिक है।

  • आर्कटिक महासागर के बर्फ क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने की दर भी पिछले 1000 वर्षों में सर्वाधिक है और अगर वर्तमान में हो रहे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की दर को नियंत्रित भी कर लिया जाए तो भी ग्लेशियर का पिघलना अगले हजारों वर्षों तक जारी रहेगा।

  • 1970 के दशक में महासागरों के गर्म होने की दर जहां 2 गुना थी, वहीं अब महासागर 8 गुना तेजी से गर्म हो रहे हैं, इससे समुद्र के जलस्तर में होने वाली वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के बाद भी अगले सैकड़ों वर्षो तक जारी रहेगी। 

  • पिछला दशक (2011 से 2020 तक की अवधि) बीते 125000 वर्षों में किसी भी दशक की तुलना में सर्वाधिक गर्म था। इस दशक में वैश्विक सतह का तापमान 1850 से 1900 की तुलना में 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

  • 18वीं शताब्दी के अंत से अब तक मानवीय गतिविधियों के कारण 2400 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया जा चुका है।

  • वैश्विक तापमान में होने वाली हर  0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से विभिन्न देशों में पड़ने वाली गर्मी में अधिकतम तापमान बढ़ेगा तो कहीं अधिक वर्षा होगी जिसके कारण बाढ़ आएगी, कहीं अधिक सूखा पड़ेगा अर्थात सभी क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न में बदलाव आ जाएगा।

यह रिपोर्ट उन देशों के लिए एक सबक है, जिन्होंने अभी तक अगले दशकों के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने का कोई लक्ष्य तैयार नहीं किया था, कोई ब्लूप्रिंट तैयार नहीं किया था और साथ ही उनके लिए भी एक सबक है जो जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि जैसे अंतर्राष्ट्रीय खतरे पर विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं।


बीते कुछ वर्षों से अनेक देशों में बाढ़ आने और जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। मौसमी गतिविधियों और उनकी सीमाओं में परिवर्तन आने लगे हैं। वर्षा के पैटर्न बदलने लगे हैं। अभी पिछले साल जून में ही अमेरिका में भयंकर गर्मी पड़ी थी। कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में अत्यंत भीषण आग लगी थी, जिसे कई महीनों तक बुझाया नहीं जा सका। इसमें करोड़ों जीव धारियों का विनाश हो गया, करोड़ों वृक्षों का विनाश हो गया, लाखो-करोड़ों हेक्टेयर वन क्षेत्र का विनाश हुआ और धुएं से पर्यावरण में जो प्रदूषण हुआ, वो अलग।


IPCC क्या है?
IPCC का गठन विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO- World Meteorological Organization) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP- United Nations Environment Programme) के द्वारा नवंबर 1988 को जिनेवा में किया गया था।
इसका उद्देश्य विभिन्न देशों की सरकारों को वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को लेकर वैज्ञानिक जानकारियां और भविष्य के खतरे के बारे में सतर्क कराना है ताकि उसके अनुसार जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों से निपटने के लिए और उसकी संभावना को कम से कम करने के लिए नीतियां बनाई जा सकें। यह संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है। इसने अपनी प्रथम रिपोर्ट 1990 में प्रकाशित की थी।

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