National Girl Child Day | राष्ट्रीय बालिका दिवस कब मनाया जाता है | राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बेटियों के लिए कुछ विशेष कविताएं



नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज 24 जनवरी को पूरे भारतवर्ष में राष्ट्रीय बालिका दिवस का उत्साह है। बालिकाओं का भविष्य बेहतर बनाने के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही कन्याओं की भ्रूण हत्याओं को रोकने के लिए एवं उन्हें एक उज्जवल भविष्य प्रदान करने के लिए 24 जनवरी को प्रति वर्ष राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने 2008 में की थी। इस दिन को विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें सेव द गर्ल चाइल्ड, चाइल्ड सेक्स रेशियो, और बालिकाओ के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षित वातावरण बनाने सहित जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना शामिल है। इसी तिथि को भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1966 ई० में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।

राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर बालिकाओं को समर्पित कुछ विशेष कविताएं


सबसे महान होती हैं भारत की बेटियां,
हम सबकी शान होती हैं भारत की बेटियां।

जिस दिन से घर में आती हैं बेटियां,
माता-पिता की इज्जत बन जाती हैं बेटियां।

भारत के विकास की डोर थामे हैं बेटियां,
भारत को बुलंदियों पर पहुंचातीं बेटियां।

सीता, सावित्री, दुर्गा की प्रतिरूप हैं बेटियां,
लक्ष्मी, सरस्वती, राधा का रूप हैं बेटियां।

हर युग में भारत को नई दिशा देती हैं बेटियां,
त्याग और बलिदान से भरपूर हैं बेटियां।

रण में चंडी दुर्गा, लक्ष्मी, अहिल्या होती हैं बेटियां,
आसमान में कल्पना, सुनीता-सी तैरती हैं बेटियां।

खेल में उषा, मल्लेश्वरी, सिन्धु-सी मचलती हैं बेटियां,
बछेंद्री, सानिया, मिताली-सी उछलती हैं बेटियां।

विजया, इन्द्रा, सुषमा-सी चमकती हैं बेटियां,
प्रशासन में किरण बेदी-सी कड़कती हैं बेटियां।

मैत्रेयी, गार्गी-सी विद्वान होती हैं बेटियां,
महादेवी, अमृता-सी साहित्यिक होती हैं बेटियां।

हर क्षेत्र में लक्ष्य को भेदती हैं बेटियां,
जीवन की चुनौती को जीतती हैं बेटियां।

भारत का सम्मान होती हैं बेटियां,
मां-बाप का अभिमान होती हैं बेटियां।

मरने से नहीं डरती हैं भारत की बेटियां,
पीछे मुड़कर नहीं देखती हैं भारत की बेटियां।
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ओस की बूँद सी होती हैं ये,
पापा की आँखों की प्यारी,
माँ की दुलारी होती हैं बेटियाँ।

बेटा करेगा रोशन एक ही कुल को,
पर बेटियाँ करेंगी रोशन दो कुलों को,
बेटा अगर हीरा होता है तो,
बेटियाँ भी सच्ची मोती होती हैं।

काँटों की राह पर चलती हैं ख़ुद तो,
पर औरों के लिये फूल बोती हैं हमेशा,
ना कभी उफ़ तक करती हैं ये,
बस हर काम करने को तत्पर रहती हैं बेटियाँ।

विधि का विधान तो देखो,
दुनिया ने क्या रस्म बनाई,
बेटा पास रहता और दूर जाती हैं बेटियाँ,
मुट्ठी में भरे नीर सी होती हैं बेटियाँ।

बहुत प्यारी होती हैं बेटियाँ……..
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बहुत चंचल बहुत खुशनुमा सी होती हैं बेटियाँ
नाजुक सा दिल रखती हैं, मासूम सी होती हैं बेटियाँ
बात बात पर रोती हैं, नादान सी होती हैं बेटियाँ
रहमत से भरभूर खुदा की नेमत हैं बेटियाँ
हर घर महक उठता है, जहाँ मुस्कुराती हैं बेटियाँ
अजीब सी तकलीफ होती हैं, जब दूर जाती हैं बेटियाँ
घर लगता है सूना – सूना पल – पल याद आती हैं बेटियाँ
खुशी की झलक और हर बाबुल की लाड़ली होती हैं बेटियाँ
ये हम नहीं कहते ये तो रब कहता है
कि जब मैं खुश रहता हूँ जो जन्म लेती हैं बेटियाँ
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फूलों सी नाज़ुक, चाँद सी उजली मेरी गुड़िया।
मेरी तो अपनी एक बस, यही प्यारी सी दुनिया।।
सरगम से लहक उठता मेरा आंगन।
चलने से उसके, जब बजती पायलिया।।
जल तरंग सी छिड़ जाती है।
जब तुतलाती बोले, मेरी गुड़िया।।
गद -गद दिल मेरा हो जाये।
बाबा -बाबा कहकर, लिपटे जब गुड़िया।।
कभी घोड़ा मुझे बनाकर, खुद सवारी करती गुड़िया।
बड़ी भली सी लगती है, जब मिट्टी में सनती गुड़िया।।
दफ्तर से जब लौटकर आऊं।
दौड़कर पानी लाती गुड़िया।।
कभी जो मैं, उसकी माँ से लड़ जाऊं।
खूब डांटती नन्ही सी गुड़िया।।
फिर दोनों में सुलह कराती।
प्यारी -प्यारी बातों से गुड़िया।।
मेरी तो वो कमजोरी है, मेरी सांसो की डोरी है।
प्यारी नन्ही सी मेरी गुड़िया।।
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मेहँदी बोली कुमकुम का त्यौहार नहीं होता-
रक्षाबंधन के चन्दन का प्यार नहीं होता-
इसका आँगन एक दम सूना-सूना सा रहता है-
जिसके घर में बेटी का अवतार नहीं होता-
जिस धरती पर से मात्र शक्ति का मान नहीं जा सकता है-
नर के नारी से सम्मान नहीं जा सकता है-
बेटा घर में हो तो बेशक सीना ठंडा रह जाये-
बेटी घर में हो तो भूखा मेहमान नहीं जा सकता…
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घर की जान होती हैं बेटियाँ,
पिता का गुमान होती हैं बेटियाँ,
ईश्वर का आशीर्वाद होती हैं बेटियाँ,
यूँ समझ लो कि बेमिसाल होती हैं बेटियाँ.
बेटो से ज्यादा वफादार होती हैं बेटियाँ,
माँ के कामों में मददगार होती हैं बेटियाँ,
माँ-बाप के दुःखको समझे, इतनी समझदार होती हैं बेटियाँ,
असीम प्यार पाने की हकदार होती हैं बेटियाँ.
बेटियों की आँखे कभी नम ना होने देना,
जिन्दगी में उनकी खुशियाँ कम ना होने देना,
बेटियों को हमेशा हौसला देना, गम न होने देना, 
बेटा-बेटी मे फर्क होता है, खुद को ये भ्रम न होने देना।
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मैं भी जीना चाहती हूँ
तेरे आँचल मे सांस लेना चाहती हूँ,
तेरी ममता की छांव मे रहना चाहती हूँ
तेरी गोद मे सोना चाहती हूँ।
मैं भी तो तेरा ही अंश हूँ,
फिर कैसे तू मुझे खुद से
अलग कर सकती है ?
तू तो माँ मेरी अपनी है
फिर क्यों….?
माना की तूने ये खुद से ना चाहा…
विवश हुई तू औरों के हाथों….
पर थोड़ी सी हिम्मत जो करती
तो शायद मैं भी जी पाती…
या फिर किया तूने ये सोच कर
कि जो कुछ सहा है तूने अब तक…..
वो सब सहना पड़े न मुझको…!
क्या बेटी होना ही कसूर है मेरा …..?
जो तू भी मुझे पराया करना चाहती है…!!
तू भी नहीं तो फिर कौन होगा मेरा अपना ?
क्यों मेरे जज्बातों को कुचल देना चाहती है ?
जीवन देने से पहले ही क्यों मार देना चाहती है ?
क्यों… मेरा कसूर क्या है ?
क्या सिर्फ एक बेटी होना ही मेरी सजा है…?
मुझको भी इस दुनिया में आने तो दो ….
कुछ करने का मौका तो दो….
जीवन की हर लड़ाई लड़ कर दिखाउंगी
खुद को साबित करके दिखाऊँगी,
मुझे एक मौका तो दो।
मैं भी जीना चाहती हूँ
तेरे आँचल मे सांस लेना चाहती हूँ,
तेरी ममता की छांव मे रहना चाहती हूँ
तेरी गोद मे सोना चाहती हूँ।
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लाड़ली बेटी जब से स्कूल जाने हैं लगी,
हर खर्चे के कई ब्योरे माँ को समझाने लगी.

फूल सी कोमले और ओस की नाजुक लड़ी,
रिश्तों की पगडंडियों पर रोज मुस्काने लगी.

एक की शिक्षा ने कई कर दिए रोशन चिराग,
दो-दो कुलों की मर्यादा बखूबी निभाने लगी.

बोझ समझी जाती थी जो कल तलक सबके लिए,
घर की हर बाधा को हुनर से वहीं सुलझाने लगी.

आज तक वंचित रही थी घर में ही हक के लिए,
संस्कारों की धरोहर बेटों को बतलाने लगी.

वो सयानी क्या हुई कि बाबुल के कंधे झुके,
उन्हीं कन्धों पर गर्व का परचम लहराने लगी.

पढ़-लिखकर रोजगार करती, हाथ पीले कर चली,
बेटी न बेटों से कम, ये बात सबको समझ में आने लगी.
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शाम हो गई अभी तो घूमने चलो न पापा
चलते चलते थक गई कंधे पे बिठा लो न पापा
अँधेरे से दर लगता सीने से लगा लो न पापा
मम्मी तो सो गई
आप ही थपकी देकर सुलाओ न पापा
स्कूल तो पूरी हो गई
अब कॉलेज जाने दो न पापा
पाल पोस कर बड़ा किया
अब जुदा तो मत करो न पापा
अब डोली में बिठा ही दिया तो
आँसू तो मत बहाओ न पापा
आपकी मुस्कुराहट अच्छी हैं
एक बार मुस्कुराओ न पापा
आप ने मेरी हर बात मानी
एक बात और मान जाओ न पापा
इस धरती पर बोझ नहीं मैं
दुनियाँ को समझाओ न पापा.
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मैं जिंदगी में बोझ नहीं हूं
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं तुम्हारे हर गम को बंटाऊंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं तुम्हारी संपत्ति को नहीं बंटाऊंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं साइना नेहवाल बन देश का नाम करूंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं मैरीकॉम बन तुम्हारे दुश्मनों को
मार भगाऊंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

जब तुम थके-मांदे आओगे
मैं चाय बनाकर लाऊंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं दुर्गा बन समाज के महिषासुरों
का विनाश करूंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं इंदिरा बनकर ‍पाकिस्तान
के छक्के छुड़ाऊंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा

मैं मां-बह‍िन-बिटिया बन
लोरी गाऊंगी
मुझे इस धरा पर आने दो पापा
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दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए
मुझ को अब इतना भी आसान न समझा जाए
मैं भी दुनिया की तरह जीने का हक़ माँगती हूँ
इस को ग़द्दारी का एलान न समझा जाए
अब तो बेटे भी चले जाते हैं हो कर रुख़्सत
सिर्फ़ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए
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जीने का उसको भी अधिकार,
चाहिए उसे थोडा सा प्यार।
जन्म से पहले न उसे मारो,
कभी तो अपने मन में विचारो।
शायद वही बन जाए सहारा,
डूबते को मिल जाए किनारा॥
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घर की मुस्कान होती है बेटियाँ,
माँ-बाप की जान होती है बेटियाँ,
मुसीबत में खड़ी पास होती है बेटियाँ,
सोचो कितनी महान होती है बेटियाँ.

नाजुक सा दिल रखती है
मासूम सी होती हैं बेटियाँ,
बात बात पर रोती हैं
नादान सी होती हैं बेटियाँ

घर महक उठता है
जब मुस्कुराती है बेटियाँ,
सूनापन फ़ैल जाता है
जब घर से दूर जाती है बेटियाँ

ईश्वर कर वरदान होती है बेटियाँ,
माँ-बाप की मुस्कान होती है बेटियाँ,
दो-दो घरों की जान होती है बेटियाँ,
सोचो कितनी महान होती है बेटियाँ.
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चांद की चांदनी ले
सूरज की आभा से दमकी
तारोँ की छाँव मेँ
अभी तो उतरी थी
बीज बन वो नन्हीँ परी
एक माँ की कोख मेँ !

बीज था वो मानव की उत्पत्ति का
बीज था वो ममता की गंगा का
बीज था वो स्नेह के झरने का
बीज था वो त्याग और बलिदान का
धरती पर मानव के उत्थान का !

माँ ने सींचा था उसे अपने ही रक्त मेँ
महसूस किया था स्पंदन जब अपने वजूद मेँ
कितने ही सपने बुन डाले थे पल मेँ
कितने ही रूपोँ मेँ रच लिया था क्षण मेँ
माँ के लिये वो ना नर था ना मादा थी
नर था तो कन्हैया था, मादा थी तो लक्ष्मी थी
गर था तो सिर्फ नव जीवन का एक एहसास वो !
कितनी ही बातेँ उससे कर डालीँ थी उसने
कितनी ही बार उसको सहलाया था कोख मेँ
प्यार के पराग से उसे भिगोया था उसने
तभी एक तूफान आया कहीँ से
पूछ बैठा उसकी पहचान को वो
एक माँ की कोख से ही जनमा था जो
कर बैठा नफरत एक माँ की कोख से ही
जनम लेने न पाये कोई कोख दूसरी
उजाड़ दी वो कोख खिलने से पहले ही !

पूछे तो कोई इन नादान हत्यारोँ से
चुकाते हैँ ऋण क्या जनमदात्री का ऐसे ही
कौन सुनेगा पुकार उस माँ की
नारी ही बन जाये जब दुश्मन नारी की !

सिसक पड़ी वो माँ सुन चीख
कोख मेँ उस अजन्मी परी की
देखी न गई दुर्दशा माँ से
नोच कर कुचली गई कली की
मरती रही है ममता उस माँ की
जब जब पनपी कोख मेँ देह नारी की
कितनी बार चढ़ेगी वो माँ सूली पर
संवेदनहीन समाज के इस विष वृक्ष की !


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