सम्राट पृथ्वीराज चौहान कौन थे?

पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे महान योद्धा एक ऐसे महान सम्राट हैं जिनका नाम मुख पर आते ही कई प्रसंग सामने आने लगते हैं। चाहे वह प्रसंग सम्राट पृथ्वीराज चौहान एवं जयचंद की पुत्री राजकुमारी संयोगिता के मध्य अद्भुत प्रेम का हो, चाहे सम्राट पृथ्वीराज चौहान एवं तुर्क आक्रांता मोहम्मद गोरी के मध्य हुए अनेकों युद्ध की हो, चाहे बात पृथ्वीराज चौहान एवं उनके राजकवि चंद्रवरदाई की हो या फिर शब्दभेदी बाण चलाने के सामर्थ्य, उनके पराक्रम की हो ऐसे अनेक प्रसंग हमारे चारों ओर घूमने लगते हैं। 

कौन थे भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान?

सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में भारतीय इतिहास में अधिक वर्णन नहीं है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि पृथ्वीराज भारत के अंतिम हिंदू सम्राट थे और उसके बाद फिर धीरे-धीरे भारत में तुर्कों का शासन स्थापित होने लगा था। भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हो गई थी। इस वजह से जो भी इतिहास हमारे सामने आते हैं वह इन्हीं विदेशियों द्वारा लिखे गए हैं। जिन पर विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि यह बात तो सभी जानते हैं कि कोई भी विदेशी या कोई भी व्यक्ति जो किसी राज्य में हो वह यदि कोई ग्रंथ लिखता है तो वह अपने राज्य अपने राजा की तारीफ में ही लिखेगा सत्य भले ही कुछ और ही हो परंतु वह राजा के विरुद्ध नहीं लिखेगा। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने आ चुके हैं चाहे वह अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य का प्रसंग हो, चाहे कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु से जुड़ी हुई हो, चाहे वह सिकंदर एवं सम्राट पोरस के मध्य हुए युद्ध का परिणाम हो ऐसे अनेक उदाहरण हैं हमारे सामने जो हमसे झूठ कहे गए हैं और आज भी हम इनका इतिहास यूनानी इतिहासकारों, मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखी गई पुस्तकों से ही पढ़ते हैं जबकि हमें अगर स्वतंत्रता मिल चुकी है संप्रभुता मिल चुकी है तो हमें अपने इतिहास का पुनः संकलन करना चाहिए। कुछ समितियां स्थापित करनी चाहिए जो इतिहास का पुनर्गठन करें। हमारे सांस्कृतिक विरासतों की सच्चाई सबके सामने लाएं।

 
सम्राट पृथ्वीराज चौहान जो भारत के अंतिम हिंदू सम्राट थे। इन्होंने 1178 ई० से 1192ई० तक राज्य किया था। इनकी राजधानी अजमेर में थी हालांकि कुछ विद्वान इनकी राजधानी दिल्ली भी बताते हैं। इनका राज्य राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में फैला हुआ था। इन्होंने अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी। इन्होंने दिल्ली में राय पिथौरागढ़ किले का निर्माण किया था। कालांतर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसी किले को तोड़वाकर भारत की प्रथम मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई थी। 
पृथ्वीराज चौहान जी जिन्हे पृथ्वीराज तृतीय भी कहा जाता है। इनके बचपन के बारे में एक प्रसंग प्रचलित है, कहा जाता है कि बचपन में इन्होंने बिना शस्त्र के एक शेर को मार दिया था और अपने हाथों से ही उसका जबड़ा फाड़ दिया था।  पृथ्वीराज चौहान के बारे में कहा जाता है कि इनकी भुजाओं में इतना बल था कि ये एक ही बार में हाथी के सिर को उसके धड़ से अलग कर देते थे। पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान  घोड़ों और हाथियों को नियंत्रित करने की कला में निपुण थे। 
पृथ्वीराज चौहान के पिता अजमेर के शासक थे जबकि उनके नाना दिल्ली के परंतु उनके नाना के कोई उत्तराधिकारी ना होने की वजह से उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जिसकी वजह से कन्नौज के शासक जयचंद की पृथ्वीराज चौहान से शत्रुता हो गई क्योंकि दिल्ली की सत्ता पर जयचंद की भी नजर थी। इस वजह से जयचंद पृथ्वीराज से घृणा करने लगे।
जयचंद की एक पुत्री थी संयोगिता जो अत्यंत रूपवती थी। एक बार जयचंद के राज्य में एक चित्रकार आया था जिसने पृथ्वीराज की तस्वीर बनाई थी जिसे देखकर संयोगिता उन पर मोहित हो गई और मन ही मन उनसे प्रेम करने लगी। पृथ्वीराज भी संयोगिता की तस्वीर देखकर उनसे आकर्षित हो गए थे परंतु दोनों के मध्य विवाह संभव नहीं था क्योंकि संयोगिता के पिता एवं पृथ्वीराज के मध्य शत्रुता थी यह बात जयचंद को पता चल गई थी इसलिए उन्होंने एक स्वयंवर का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने बहुत से राजाओं और राजकुमारों को आमंत्रित किया परंतु पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया एवं उन्हें अपमानित करने के लिए उनकी एक मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर खड़ी कर दी थी। संयोगिता ने उसी मूर्ति को वरमाला पहना दी।


पृथ्वीराज चौहान को भी यह बात पता चल गई थी और वह पहले से ही मूर्ति के पीछे खड़े थे। जैसे ही जयचंद संयोगिता पर क्रोधित हो उन्हें मारने के लिए उठे,  पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। जयचंद और उनके सैनिकों ने पृथ्वीराज को पकड़ने का प्रयास किया परंतु वे असफल रहे। यहीं से पृथ्वीराज के प्रति जयचंद के मन में शत्रुता और बढ़ गई। 

पृथ्वीराज चौहान ने बुंदेलखंड पर आक्रमण कर महोबा की लड़ाई में चंदेल शासकों से युद्ध किया था, इस युद्ध में महोबा की रक्षा करते हुए आल्हा और ऊदल नामक दो भाईयों ने वीरता पूर्वक पृथ्वीराज का सामना किया था, हालांकि कहा जाता है कि इस युद्ध में ऊदल शहीद हो गए थे। इनकी लोक कथाएं आज भी बुंदेलखंड में प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि आल्हा आज भी मां शारदा की पूजा करने प्रतिदिन वहां आते हैं।
 
पृथ्वीराज चौहान एवं तुर्क आक्रांता मोहम्मद गौरी के मध्य अनेकों युद्ध हुए थे। हालांकि इस पर अनेक विद्वानों में मतभेद है, कोई सिर्फ 2 युद्ध कहता है तो कोई 8 कोई 17 तो कोई 21। युद्धों की संख्या पर काफी मतभेद हैं।

वर्तमान में फिल्म स्टार अक्षय कुमार ने पृथ्वीराज चौहान के ऊपर एक फिल्में बनाई है जिसमें पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गौरी के मध्य 17 युद्धों का वर्णन किया गया है जिनमें से 16 बार पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को परास्त कर दिया था। 

 
कहा जाता है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान एवं तुर्क आक्रांता मोहम्मद गौरी के बीच हुए 17 युद्धों में 16 युद्धों में सम्राट ने मोहम्मद गौरी को हराने के बाद भी सहृदयता दिखाते हुए जीवित छोड़ दिया था  परंतु कन्नौज के राजा जयचंद ने पृथ्वीराज से अपना बदला पूरा करने के लिए मोहम्मद गोरी से हाथ मिला लिया और 1192 ई० में तराइन के द्वितीय युद्ध में  पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया। इस बार युद्ध में अकेला पड़ जाने पर पृथ्वीराज ने अन्य राजपूत राजाओं से मदद मांगी परंतु संयोगिता के स्वयंवर में हुए अपमान का बदला लेने के लिए किसी ने भी पृथ्वीराज की मदद नहीं की और इस वजह से पृथ्वीराज वह युद्ध हार गए।


पृथ्वीराज को सरस्वती नदी के तट पर बंदी बना लिया गया और वहां से मोहम्मद गौरी उन्हें गजनी ले गया। उसने पृथ्वीराज की आंखें फोड़वा दी थी। 
यहां एक और प्रसंग प्रचलित है, पृथ्वीराज के स्वामी भक्त राजकवि चंद्रवरदाई ने एक योजना बनाई और मोहम्मद गौरी से पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण चलाने के सामर्थ्य का वर्णन किया जिसे सुनकर मोहम्मद गौरी आश्चर्यचकित हो गया और वह भी उस कला को देखने के लिए तत्पर हो उठा। उसने पृथ्वीराज के उस कौशल को देखने के लिए पृथ्वीराज को क्रीडांगन में खड़ा करवा दिया और हाथों में शस्त्र दे दिए। तब चंद्रवरदाई ने एक कविता पढ़ी 
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान।।
सम्राट पृथ्वीराज ने इस कविता के आधार पर बिना देखे ही मोहम्मद गोरी पर तीर चला दिए थे जिससे मोहम्मद गोरी घायल हो गया था हालांकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उसकी मृत्यु हो गई थी परंतु इस पर मतभेद हैं क्योंकि इसके पश्चात वह 1194 ई० में चंदावर के युद्ध में जयचंद से लड़ा था। 
इसके पश्चात शत्रु के हाथों मारने से बचने के लिए चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज ने एक दूसरे की तलवार से गर्दन काट दी थी और वही वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 
 इस प्रकार भारत के अंतिम हिंदू सम्राट के साम्राज्य का अंत हो गया और भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना का द्वार खुल गया। 

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