UNESCO | World Heritage Day 2022 | अमूर्त सांस्कृतिक विरासत क्या होती है | यूनेस्को द्वारा घोषित भारत के अमूर्त सांस्कृतिक विरासत स्थल 2022


यूनेस्को की भारत में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत

UNESCO: World Heritage Day 2022- 

List of World Intangible cultural Heritage site in India 2022

प्रतिवर्ष दुनिया भर में 18 अप्रैल को World Heritage Day अर्थात विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों तथा परंपराओं के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाई जा सके। 


आज के लेख में हम संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को द्वारा ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी हुई किसी राष्ट्र अथवा किसी संस्कृति की परंपराओं को संरक्षण देने के उद्देश्य से शुरू की गई अमूर्त सांस्कृतिक विरासत स्थलों के बारे में बात करेंगे।

सबसे पहले यह जानते हैं कि यूनेस्को के अनुसार अमूर्त सांस्कृतिक विरासत क्या होती है?


अमूर्त सांस्कृतिक विरासत, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है- सांस्कृतिक महत्व की ऐसी विरासत जिसका कोई भौतिक स्वरूप न हो अर्थात जो लोगों के द्वारा सामूहिक रूप से किसी परंपरा, कला अथवा विचार के रूप में पोषित एवं फलित होती हो, जो पीढ़ी दर पीढ़ी किसी विशेष संस्कृति, किसी विशेष समुदाय अथवा किसी विशेष राष्ट्र के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित रखती हो, उसके अस्तित्व को एवं उसकी विशेष पहचान को बरकरार रखती हो, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत कहलाती है।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत किसी समुदाय, संस्कृति अथवा राष्ट्र आदि की वह अमूल्य निधि है जो सदियों से उस समुदाय, उस संस्कृति या उस राष्ट्र के अवचेतन को अभिभूत करते हुए निरंतर समृद्ध होती रहती है। यह सांस्कृतिक विरासत सिर्फ स्‍मारकों या कला वस्‍तुओं के संग्रहण तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि इसमें उन परंपराओं एवं प्रभावी विचारों को भी शामिल किया जाता है, जो पूर्वजों से अगली पीढ़ी को प्राप्‍त होते हैं। 


जैसे- मौखिक रूप से चल रही परंपराएं, कला प्रदर्शन, धार्मिक एवं सांस्‍कृतिक उत्‍सव और परंपरागत शिल्‍पकला।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता क्यों है?

यह अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासत अपने प्रकृति के अनुरूप क्षणभंगुर है, अर्थात यदि इन्हें सहेज कर ना रखा जाए, यदि इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षण ना दिया जाए तो यह अमूल्य अमूर्त सांस्कृतिक विरासत धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। इन सांस्कृतिक विरासतों के नष्ट होने से न केवल सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व की ये परंपराएं अस्तित्वविहीन होती हैं, बल्कि इन परंपराओं एवं  कलाओं के माध्यम से जिस संस्कृति का अस्तित्व, जिस राष्ट्र का अस्तित्व समय के साथ साथ बरकरार रहता है, वह भी खतरे में आने लगता है। 

इसलिए इसे संरक्षण करने के साथ-साथ समझने की भी आवश्‍यकता है क्‍योंकि वैश्‍वीकरण के इस दौर में सांस्‍कृतिक विविधताओं को अक्षुण्‍ण एवं सुरक्षित रखना हमारी एक महत्‍वपूर्ण जिम्मेदारी है।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत समय के साथ अपनी समकालीन पीढि़यों की विशेषताओं को अपने में आत्मसात करते हुए मौजूदा पीढ़ी के लिये विरासत के रूप में उपलब्ध होती है। अमूर्त संस्कृति समाज की मानसिक चेतना का वह प्रतिबिंब है, जो कला, क्रिया या किसी अन्य रूप में उस समाज में अभिव्यक्त होती है। 


उदाहरणस्वरूप, योग इसी अभिव्यक्ति का एक स्वरूप है। भारत में योग एक दर्शन भी है और जीवन पद्धति भी। यह विभिन्न शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। इसे यूनेस्को द्वारा 2016 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में स्वीकार किया गया था।


आगे इस लेख में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में स्वीकार की गई भारत की 14 सांस्कृतिक विरासतों की सूची दी जा रही है, जिनमें से चौदहवीं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में कोलकाता, पश्चिम बंगाल से दुर्गा पूजा को अभी हाल ही में 2021 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई है।

भारत में यूनेस्को के अमूर्त सांस्कृतिक विरासत स्थल 

  • वैदिक मंत्रोच्चारण की परंपरा, 2008 

  • रामलीला- रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन, 2008

  • कुटियत्तम, संस्कृति रंगमंच, 2008 

  • रम्मन, गढ़वाल हिमालय के धार्मिक पर्व एवं अनुष्ठानिक रंगमंच, 2009 

  • मुदियेट्टू- केरल का थिएटर एवं नृत्य नाटक, 2010 

  • कालबेलिया लोक गीत एवं राजस्थान के नृत्य, 2010 

  • छऊ नृत्य, 2010 

  • लद्दाख का बौद्ध मंत्रोच्चारण, 2012 

  • संकीर्तन- मणिपुर का अनुष्ठानिक गायन, ढोल एवं नृत्य, 2013 

  • पंजाब में जंडियाला गुरु के ठठेरों के बीच पीतल एवं तांबे के बर्तन बनाने का पारंपरिक शिल्प, 2014 

  • योग, 2016 

  • नवरोज, 2016 

  • कुंभ मेला (प्रयागराज), 2017 

  • दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल), 2021


UNESCO की “अमूर्त सांस्कृतिक विरासत स्थल” योजना के बारे में कुछ विशेष

यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची 2008 में स्थापित की गई थी, जब अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए कन्वेंशन लागू हुआ था। 

यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के दो भाग हैं- 
मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची,
तत्काल सुरक्षा की आवश्यकता में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची।

संस्कृति मंत्रालय ने एक स्वायत्त संगठन संगीत नाटक अकादमी को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत से संबंधित मामलों के लिए नोडल कार्यालय के रूप में नियुक्त किया है, जिसमें यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची के लिए नामांकन डोजियर तैयार करना शामिल है।

यहां एक बात और विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में जिन 14 स्थलों को मान्यता दी गई है, वे सभी भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची(National List of Intangible cultural heritage- ICH) से ली गई हैं। 

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची (ICH) का उद्देश्य भारतीय अमूर्त विरासत में निहित भारतीय संस्कृति की विविधता को नई पहचान प्रदान करना है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न राज्यों की अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों एवं परंपराओं के बारे में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों में जागरूकता फैलाना एवं उनको संरक्षण प्रदान करना है।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये यूनेस्को के वर्ष 2003 के कन्वेंशन (Convention) का अनुसरण करते हुए संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने इस सूची को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करने वाले पाँच व्यापक डोमेन में वर्गीकृत किया है-

  • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के एक वाहक के रूप में भाषा सहित मौखिक परंपराएँ और अभिव्यक्ति;
  • प्रदर्शन कला;
  • सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान और उत्सव;
  • प्रकृति एवं ब्रह्मांड के विषय में ज्ञान तथा अभ्यास;
  • पारंपरिक शिल्प कौशल।

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